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________________ || गाथा-सम दम धर बहुणारणी, सहूहित लोकोयभानवेत्ताये। प्रिविधिमक विवरायो, सिसिहत इच्छोय एवं गुरु पूजो ॥९॥ अर्थ—सम कहिये समता सहित होय। दम कहिये मन इन्द्रिय का जीतनेवारा होई। धर कहिये इनका धारक होई। वहुणाशी कहिये विशेष ज्ञानी होय । सहशित करिये सर्वको सुखदायक हो सोकर भाव ।। बैत्ताए कहिए लौकिक कला का वेत्ता होई। प्रिक्षखिमय कहिण प्रश्नपूछतें क्षमावान होय उत्तर देनेवारा होय । वियरायो कहिये वीतरागी होय । सिसिहितइच्छोय कहिए शिष्यनिकों भली गति का वांछक होय। एवं गुरु : पूज्यो कहिए ऐसे गुरु पूज्य हैं। भावार्थ-शिष्य जननि का मला तब ही होय जब ऐसा गुरु उपदेशदाता होई। सो ही कहिरा है। प्रथम तो समता भाव सहित तिनकी मूर्ति होई। जो उपदेशदाता गुरु की मुद्रा भयानक होय तौ सभाजन को भय उपजावे तो ताके निमित्त ते शिष्यनि के ज्ञानलाभ न होय। मन में धर्म स्नेह करि हर्ष नहीं उपजे। जैसे भयानक सिंह का आकार रहता होय तो वन के सर्व पशु भी भय खावं तथा जैसे राजा तस्त पर बैठनेहारा कोपसहित भयानक होय तौ ताको देखि सब सेवक ताको भयानीक जानि सुख तजि, भयवान होंथ । तातें सभानायक उपदेशदाता, शान्तस्वभावी चाहिये। ताके निमित्त पाये शिष्यनिकौं सन्तोष उपजै।३। जो गुरु उपदेशदाता संजमी इन्द्रिय मन का जीतनहारा होय तौ समाजन को भी संजम की प्राप्ति होय । कदाचित उपदेशदाता विषयनि का लोलुपी होय तौ सभाजन भी असंजमी होय जावें। तातें गुरु संजमी चाहिये। २। उपदेशदाता विशेषज्ञानी होय तो सभाजन को भी ज्ञान की प्राप्ति होय । उपदेशदाता अज्ञानी होय तो सभाजन भी बझानी रहें। जैसे राजा द्रव्यवान होय तो राजा के सेवक भी धनवान होय । अरु राजा द्रव्यरहित होय तौ ताके सेवक भी द्रव्यरहित दरिद्री होय दुःख पावै। तातै उपदेशदाता गुरु ज्ञानी चाहिये।३। और उपदेशदाता सबजन का हितकारी चाहिये। जो शिष्यजन के परभव सुन का इच्छुक होय तौ मला उपदेश देई, सभा का भला करें। और उपदेशदाता शिष्यजनका हितकारी नहीं होय तो अपना विषय साथै, अपनी मानबड़ाई रहै, पूजा होई, और जीव अपने पांव पूज, और का धन अपने घर में आवे रोसा उपदेश देय शिष्यनि ते दगाकर विश्वास उपजावे, कषाय सहित उपदेश देवे, पीधे श्रोता चाहे जैसो गति जावो। ऐसे गुरु के उपदेश तें जीवन का भला नहीं होय । | तातें गुरु, शिष्यनि का हितकारी चाहिये । ४। उपदेशदाता-गुरु लौकिक व्यवहार का वैत्ता होय तौ लौकपूज्य
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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