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________________ श्री सु ? fa ६२७ में साहस चाहिये। अनेक तप करते कबहूँ तन तैं मोह उपज आवै। विषय कषाय की इच्छा होय जावै ' तब तप तैं दीर्घ खेद जानि विमुख चित्त करें। तौ तप का फल नष्ट होय । तातें तप में खेद होयतें तप का लोभी साहस राखें तौ तप का उत्कृष्ट फल होय और अपने सुधर्म का घात करनहारे अनेक पापी जन आपको धर्म तैं चलाया चाहैं । तौ पापी जन के उपद्रव किये में अपना धर्म रतन राखने कूं साहस राखना योग्य । पुण्य के उदय में तो सब कोई धर्म में धीरज राखेँ हैं। परन्तु जब पाप का उदय प्रकट होय है। तब दरिद्रता में धीरज परिणाम राखना, ये महाविवेकी का बल है । तातें दरिद्रता में धीरज साहस योग्य है और जब कोई कर्म के जोग तैं कोई दीर्घ जल में जाय पड़ना होय अरु कोई उपाय नाहीं दीखै। तब एक साहस ही सहाय जानना। ऐसे कहे जै ऊपर अनेक अशुभ कारण हैं, तिनमें साहस ही योग्य है ऐसा जानना । ८४॥ आगे ये तीन स्थान विवेकी जीव के हाँसि के कारण हैं ऐसा दिखावे हैं गाया - अगय पठत आयाणो, विविधा सिङ्गार काय विधवायो । अग निन्दी खुसचित्तो, ए तोए बाम हासि मग गेयो ||६|| अर्थ - अगय पठत आधारणो कहिये, अजान होय के आगे बोलें। विविधा सिंगार काय विधवायो कहिये, विधवा-स्त्री नाना-श्रृङ्गार शरीर पै करै । जग निन्दो खुसचित्तो कहिये, जगत् निन्दा होय के, सदा खुशी रहे । रातीए थाणेय हाँसि मग गेयो कहिये, रा तीनों स्थान हौं सि के कारण जानना । भावार्थ- आपको जो पाठ आवता नाहीं, सो और कोई पढ़ता होय, ताके आगे-आगे आप बोलें-पढ़े, सी भोला-अज्ञानी जीव, विवेकीन करि निन्दा पायें । सो जीव, हाँसि का स्थान है। यहां प्रश्न जो अज्ञान जीवन का भोलापना देखि विवेकी जीव को बता देना योग्य है । परन्तु हाँसि का करना जोग नाहीं । ताका समाधान --जो अज्ञानी दोय प्रकार के हैं। एक तौ भोला, अजानः सरल परिणामी अज्ञान । सो आपकों ऐसा मार्ने; जो मैं कछु समझता नाहीं । मोकों कोई धर्म का मार्ग बताय, मेरा पर-भव सुधारे, तौ वा पुरुष का उपकार भव भव में नहीं भूलूं। ऐसा धर्मार्थी होय. सो तो मली सीख मानें। रुचि तें अङ्गीकार करै। ऐसे भोले- अज्ञानी जीव की हाँसि तौ विवेकी नाहीं करें। ऐकूं तो बताय तक सुमांर्ग लगाय, ताका भला करें और एक अज्ञानी हठी-मानी होथ है। सो आापक पण्डित मानता - सम्ता अपना महन्तपना औरन को बतावता सन्ता, ऐसा अज्ञानी मान-बुद्धि तैं काहू कूं पूछता ३२७ त
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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