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________________ । विचार जो मैंने पूर्व पाप-कर्म उपाया है, सो अब विलाप किए कहा होय? कैसे जाय है ? तातै राजी होय मोकौं भी भोगना है । ऐसा साहस विचारै तब सर्व रोग सहज हो जाय । वेदना मन्द होय जाय है । तात रोग-दुःख में साहस । ३२६ चाहिये और युद्ध विष अरि कौं प्रबल जानि संग्राम विषम देखि, करि कायर-भाव करें। कम्पायमान होय, धीरजता तजि भागे। तो लज्जा आवै। युद्ध हारि जाय । कुलकं दाग लागे। तातें रण में साहस चाहिये जाकरि जय होय और काहू धर्मात्मा ने अपना प्राथु-क्रम निकट जानि के इस धर्मो जीव नै पर-भव सुधारने की अनशन का धारण किया होय । खान-पान तजि कुटुम्ब व शरोरते मोह तजि आप तुच्छ परिग्रह कू राखि धर्म-ध्यानरूप तिष्ट या है। किन्तु काय ते आत्मा पुटौं : होय है . हो क्योंदिया निकस है, त्यों-त्यों यह सन्यास धारनहारा ऐसा विचार। जो अब आत्मा तन तैं शीघ्र छुटै तौ मला है। अब मेरा साहस रहता नाहों। इत्यादिक अस्थिरता-भाव विचारै तौ व्रत डिाना परै। तातै व्रत की रक्षा के निमित्त ऐसा विचारै, कि मैंने इस काय का ममत्व त्यागा। धर्म-ध्यानमयी निराकुल होय तिष्ठ हूं। अब यह तन जब जाय तब जावो मेरे कछु खेद नाहों।। रोसा साहस सन्यास में भले फल का दाता है। तातें सन्यास में साहस चाहिये और मरण समय महावेदना में मोह के वशि करि आकुलता करै। तो मरण तो टलता नाही; परन्तु कायरता ते मरण बिगड़ जाय, कुमति होय तातें मरण-समय धीरजता सहित मोह रहित परिणाम करि मरण करै। तो पर-भव सुधरै तातें मरण-समय साहस चाहिये और कम के उदय ते जीव यै अनेक प्रकार संकट आय पड़े हैं। तिनमें धीरजता होय तो बड़ा संकट सुगम मासै। धीरजता बिना दुःख में बड़ा खेद होय । तातै दुःख संकट में साहस चाहिये और ध्यान करते चित्त की एकाग्रता सहित धर्म-ध्यान का विचार करता पुण्य का संचय करै है। ता समय कोई पापी जन आय धर्मध्यान से डिगाया चाहै। ताके निमित्त अनेक कुचेष्टा करै। सो वाके उपसर्ग ते चञ्चल-भाव होय तो धर्म का फल हीन होय। धोरजता राखें तौ पूजा पावै। जैसे—वह सेठ चौदश की रात्रि स्मशान भूमि में प्रोषध सहित ध्यान धरि तिष्ठे था। पीछे दोय देव, धर्म की परीक्षाको पाये तब सम्यग्दृष्टि देव ने कही ये सेठ गृहस्थ है। हमारा धर्मो है सो आज चौदशक उपासा ध्यान रूप है। ताहि डिगावौ तौ जाने। तब इस ज्योतिषो मिथ्यादृष्टि । देव ने सर्व राम्रि अनेक उपसर्ग किये सो नाही डिग्या तब धीरजता देखि देव ने सेठ की पूजा करो। तातें ध्यान
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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