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________________ लज्जा करें, तो इन्द्रिय-सुख नाही होय। तातै पंचेन्द्रिय-भोग समय लज्जा नहीं करनी। ७। और वादिनों के | बजावै मैं लज्जा करें, तौ वादिन-कला सम्पूर्ण नहीं बने। तातै वादित्र-समय लज्जा नहीं करनी।८। गावने में ३१५ लज्जा करै, तो गावना नहीं बनै । ताते गावने मैं लज्जा नहीं करता। ६ । शुभ-शान के बढ़ाने कौं, परभव-सुख पावने को, शास्त्राभ्यास करने-पढ़ने विर्षे, लज्जा नहीं करनी। पढ़ने मैं लज्जा कर, तो ज्ञान को वृद्धि नहीं होय ! | यात शास्त्राभ्यास-पढ़ने में लज्जा नहीं करनी। चरचान में, प्रश्न करिव में, तव विचार में,उपदेश करते, इत्यादिक विद्याभ्यास के ध्यान में स्वाध्याय में लज्जा करें, तो आप ही अज्ञानी रहे। अपना बिगाड़ होय। तातें विद्या के स्वाध्याय करवै में, लज्जा नहीं करनी। २०। ऐसे भोजन, व्यापार, युद्ध, नृत्य, गीत, चूत, वाद, भोग, वादिन, पठन-इन कहे दश भेदन विर्षे, चतुरन को लज्जा योग्य नाहों। इति श्रीसुदृष्टितरङ्गिणी नाम ग्रन्यके मध्यमें अनेक नम सूचक, उपदेश-कथन वर्णन करनेवाला तेईसवाँ पर्व सम्पूर्ण भया ॥२३॥ आगे ऐसा बतावे हैं कि जो पत्न, सबल होय तो निर्वल का भी कार्य सिद्ध होय... गाथा-गिरि-सिर तह फल पकऊ, काको भवान्ति पक्षबल दोणो। णभूतव्य सिंहो, पडोणो जय गज-घटा सूरो ।। ७७॥ अर्थ-गिरि-सिर तरु फल पकऊ कहिये, पर्वत के शिखर पर एक वृक्ष के फल पके हैं। काको भक्षन्ति पक्षबल दीगो कहिये, ताकी काक तो पंखन के बलते दीन है तो भी खाय है । पतीखो कहिये, परन्तु पंक्षा नहीं। तातें सभूतव्यं सिंहो कहिये, ताक् सिंह नहीं भोग सके है । जय गज घटा सूरो कहिये यद्यपि ये गजन के समूहळू जोतनेक शर है। भावार्थ पक्षन का बल होय तो सामान्य बल धारी का भी कार्य सिद्ध होय और पक्षन का बल नहीं होय तो बड़े बलवान् का भी कार्य सिद्ध नाहीं होय है। सी ही बतावें हैं। जैसे कोई एक पर्वत के उत्तुंग शिखर पर एक वृक्ष है। ताकै भले फल मिष्ट लागें हैं सो ताकू वायवे कू कोऊ समर्थ नाहीं। ऊँचा बहुत है। सो ता फलकों काक तौ अपने पंखन के बल तैं भोग सके और तिस फल के भोगवेकौं सिंह की सामर्थ्य नाहीं। क्यों ? जो सिंह के पांखन का बल नाहों। बड़े-बड़े हाथिन का समूहकों तौ सिंह जीते, ऐसा बलवान् है।। परन्तु उतुङ्ग पर्वत के शीश पर वृक्षन के फल खायवेकौं समर्थ नाहों। काहे तें, कि पांख नाहीं। सो देखो. पखिन के बल तो काक भी बड़ा फल खावै। अरु पंख बिना सिंह के हाथ मज़ा-फल नहीं जावे। तात सर्व तें बड़ा बल PMES ३१% - . - . .
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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