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________________ ३१२ भरतार, स्त्री को इन कारणन में परखै। मित्र, मित्र इन कारणन में परने और भाई, भाई को इन ! । कारणन में परखै। पुत्र, पिता को इन कारणन में परमार पिता, दाना परो । वेवक स्वामी क और स्वामी, सेवक के इन कारणन में परखें और चित्त की धीरजता, धर्म कार्यन में, तप करते, संघम की रक्षा करतें, इन कारण परखिये । इत्यादिक कहे जे धर्म-कर्म सम्बन्धी कार्य सर्व-अंग, इन नव अवसरन में दृढ़ रहै। सो साँचा धर्म-कर्म अंग जानना। बाकी पुण्य-उदय में अपने-अपने स्वार्थ पूरने में तौ. सब ही सहाय करें व धर्म सेवन करें। परन्तु ऊपर कहे अंगन में-असहाय में दृढ़ रहै, सो धन्य कहिये ।७। आगे एक दुःख कौं अपनी-अपनी कल्पना करि, अनेक उपचार बताउँ, सो कहिये हैंगाथा-वेद्यो कथयत रोगो, भूतो चयटक गहण मन्तीए। पूयो पाजय गांणय, एक गद जया दिट्टि भारान्ती ।। ७२ ।। अर्थ-इस जीव कौं कोई पाप उदय करि, एक रोग होय । ताकौं जगत् के चतुर जीव, अपनी दृष्टि माफिक उस दुख का कथन करें। सो कोई वैद्य कौ पछिए, जो हमैं खेद काहे तें है, सौ कहो । तो कोऊ ज्वर, वाय, खांसी, स्वासादि रोग बतावे और कोऊ मन्त्रवादी-चेटकोक पूछिये । जो हम दुखी हैं. सी क्यों हैं ? तब कहै, तुमकों ऊपरला फेर है । जोरावरी भूत-प्रेत की फरपट में आये हौ। सो हम मन्त्र, जन्त्र, तन्त्र गंडा कर देंगे, सो सब रफे होय साता होय जायगी और निमित्तज्ञानीक पूछिये, जो हमकू खेद क्यों है ? तब कहै, तुमको शनीचर-मंगलादि ग्रहों की करता है। सो इनका किया खेद है । तातें इनकी पूजा करौ। दान देऊ । फलाने नक्षत्र में साता होयगी और कोऊ धर्मात्मा, संसार-भ्रमण का जाननहारा, पुण्य-वाप का समझनेहारा, तत्वज्ञानी, सम्यग्दृष्टि कं पूछिये, जो हमको खेद है सो क्यों ? तब समता-रस-रंगोला कहै । भो भव्य । कोऊ पूरव उपार्जित पाप का अश्म-फल प्रगट भया है। इस भव में ताने दुख किया है। तातें | तुम विवेको हो, पाप का फल रोसा दुखदायक जानि, पाप मति करौ। तातै पर-भव में फेरि दुख नहीं । होयवेकंधर्म-सेवन करौ, पर-भव सुख पावोगे । धर्मात्मा रोसी कहै। ऐसे राक दुख होय, ताके दूर करने के प्रथि, जो कोई कूपूछिये, सो अपनी-अपनी जैसी-जाको दृष्टि होय, जा वस्तु के अतिशय में जाका चित्त रसायमान होय, सो ही इस जीव कू सहायकारी भासै है सो जैसा जाका ज्ञान था तैसा ही इन्होंने इलाज. ३१२
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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