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________________ ३०२ amavas ते यह देख समता-भाव राखें हैं। भावार्थ-जे तत्वज्ञानी धर्मात्मा हैं सो जगत की बिडम्बना देझिा ऐसा विचार हैं। जो देखो पञ्चमकाल की महिमा। कि जहां सदैव रहिये, जा क्षेत्र में बहुत दिन का वास ऐसे क्षेत्र में तो अदेवा-बैरोजन बहुत हैं। सो कोई धर्म कर्म शान-पान देख सकता नाहीं और अपने स्नेही हैं सर्व प्रकार सुखा के कारण हैं.तिन तें बड़ा अन्तर है। वह सज्जन हैं सो दुर ही देश में बसें हैं और जो तीरथ समान उत्तम स्थान है जहा रहैं सदैव पुण्य का बन्ध कोजे। सत्संगी जोव पूजा, शास्त्र, ध्यान, चरचा का सदैव निमित्त सो जहां रहने कं सदा मन चाहै। ऐसे उज्ज्वल स्थान क्रुजगार की ठोकता नाहीं। सो खान-पान की थिरता बिना रखा जाता नाहीं और जहां मला रुजगार है। खान-पान की चिन्ता नाहीं। रोसे क्षेत्र में सत्संग नाहीं। जहाँ अपना पर-भव सुधारिये सो पुण्य के निमित्त ध्यानाध्ययन पूजादिक निमित्त नाहीं। ये पञ्चमकाल की जोरावरी है। ऐसे खोटे काल में भली वस्तु का मिलाप थोरा है। पापकारी, कुलाचारी जशुभ वस्तुन का निमित्त बहुत है सो इसका यह सहज स्वभाव है। शुभ निमित्त अल्प अशुभ का निमित्त बहुत रोसी इस काल की सहज प्रवृत्ति है। ताके मेटवे क कोई उपाय नाही होनहार कोई मेटता नाही। जा-जा समय सुखा-दुक्षा होवना है सो हो है। ऐसा जानि धर्मात्मा विवेको तिनकौं समता-भाव राति धर्म-ध्यान का आश्रय लेना योग्य है । ६६। आगे कहै हैं कि शुभ-भावना बिना करनो का फल शुभ नाहीं। ताकौ दृष्टान्त देय बतावे हैंगाथा-सुक पठती बक्र फाणो, खर भसमी पसु पगण तरु कट्टो । उरण सिरकच मुड़ई, भावो सुधी विणा ण सीझन्ती॥६७|| अर्थ–सुक पठती कहिये, तोते का पढ़ना। बक झालो कहिये, बक का ध्यान। झार भसमी कहिये गधे । का राखा लगावना। पशु सगरण कहिये, पशु का नगन रहना। तरु कट्ठी कहिये, वृक्षन का कष्ट सहना । उरण सिर कच मुड़ई कहिये, भेड़ के बाल का मूड़ना। भावो सुधी विणा ण सीझन्ती कहिये, ए सब शुभ भाव बिना मोक्ष न होय। भावार्थ--जीव का भला तथा बुरा, इस हो के परिणामन ते होय है। तातें शुद्ध-भाव बिना. जीव चाह जैसा कष्ट करौ, मला होता नाहीं। जैसे-तोता रानि-दिन राम-राम किया करें है। परन्तु या राम-नाम तें कछु प्रीति नाहीं। ऐसा बिचार नाही, जो राम-नाम ल्यौं हो त्यों मेरा कल्याण होयगा तथा ये राम-नाम उत्कृष्ट है। याका नाम जो लेय सो सुखी होय है। ऐसा भेद-भाव नहीं। जैसे-पढ़ावनहारा पढ़ा है, उसी ही प्रकार ३०२
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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