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________________ | ३० कहियै है-सो ऐसे काठ बेक्तें कठेरे को बहुत दिन भये, सो एक दिन रात्रि समय उस ही राह एक जौहरी की | आय निकस्या। सो इस कठ्या के घर में सूर्य समानि प्रकाश देख्या। तब जौहरी ने विचारी जो दीपक का। प्रकाश तो ऐसा होता नाहों। तब जौहरी इस कठेरे के घर में देखता भया। सो देखें तो चिन्तामणि रतन है। तब उस जौहरी ने कठेरे कं बुलाय चिन्तामणि का भेद बताय कही–रे मूर्ख! तेरे घर में मनोवांच्छित सुस्व का देनेहारा चिन्तामणि है। अरु त अज्ञानता रौं काठ का भार बहै है, अरु दरिद्री होय रखा है। अब या जांचि। तुं जांचैगा, सोही मिलेगा। तब कठेरा ने जांची। मो चिन्तामणि रत्न! मोकू स्वोर भोजन देह, तबही खीर मिली। तब कही मोकू धोती देय, तब धोतो मिली। तब था कठेरे ने घर, धन, आभूषण, वस्त्र: जो-जो जांचे, सो सर्व मिले । तब कठेरा आप सेठ के पांव पड़चा उपकार मान्या । तब सेठ या राजी भया। सेठ उपकार करि अपने घर गया पीछे कठेरा अपनी अज्ञानता जानि पछताया! जा देखो मेरे घर में वांछित सुख का दाता रतन अरु मैं दरिद्री रह्या। सो ये सेठ धन्य है जो इस चिन्तामणि का भेद बताया। अब मैं सुखी भया दरिद्र-दुख गया। पोछे रात्रि व्यतीत भई । प्रभाति, राणा केसी विभूति प्रगट करि लोक-पूज्य होता भया। चिन्तामसि के प्रभावते काठ ढोना गया। परम सुखी भया। तैसे ही इस आत्मा का ज्ञान या ही है। परन्तु मैद पाये बिना अज्ञानी भया फिरै है कठेरे की नाईं दरिद्री होय रह्या है। जब गुरु प्रसाद ते ज्ञान चिन्तामणि का भेद पावै, तो जगतदुस्ख जाय सुखो होय पूज्य पद पावै उपकारी की सेवा करै। तातें विवेकी है ते भला ज्ञान पाय धर्म में लगाय धर्म-सेवन पुजा-भक्ति, जीवाजीव तत्व विचारादि करि भली जोडि-कला करह। । इति श्रीसुदृष्टितरङ्गिणी नाम ग्रन्थ के मध्य में काच्य-परीक्षा का वर्णन करनेवाला बाईसा अधिकार सम्पूर्ण भया ॥ २२ ॥ आगे पश्चम काल की महिमा कहिये हैगाया-जहि पति अरि हितदूरउ तीषयाणेम रजम विणवेदो । रञ्जय तहां न सुसंगो ए कलुबल गेयता समभावो ॥ ६६ ॥ अर्थ-जहि थति अरि कहिये, जहाँ रहिये है तहां बैरी पाईये है। हित दुरउ कहिये, हित हैं सो दर हैं। तीयथारोय कहिये, तीर्थ-स्थान। रजय विखेदो कहिये, जय बिना खेद है। अब तहान सुसंगो कहिये, रखत हैं तहाँ सुसंग नाही है। एकलुबल कहिये, ए कलयुग का बल है। गेयतज्ञ समभावो कहिये, पण्डित हैं ३०
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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