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________________ श्रद्धान करते सम्यक्त्व श्रद्धान दृढ़ होई। ऐसे कथन होत केलेक भोरे, मन्दज्ञानी, कषायनि के सताये, कोई॥ रोसा प्रश्न या कोई न्यावक की वार्ता सभा में चलायदेय सी सकरि शास्त्र का कथन विरोधा जावै। सर्वसभा के । जीवन के चित्त उद्वेग मई होई सर्व पापबन्ध करें, जाप पापबांधि करि परभव बिगा.. पर को दुःख उपजावे सो || पापबन्ध करनहारे हैं।८।। अब चौदह श्रोता और हैं सो मित्र तिनमें पक्षको खोट तक मले हैं। तम चालनी समान पाषाणसमान, सर्पसमान, फटेघड़ा समान इन पाँचनि का स्वभाव तो ऊपरि आठ श्रोतान में कहि आये हैं। तातें यहाँ फेरि नहीं कहा । और मी कैतेक खोटे श्रोता हैं तिनका स्वभाव कहिये हैं सो जहाँ धर्म उद्योत देखि आपते तो नाहिं बनै परन्तु धर्मघात विचारे, जहां मला शास्त्र का उपदेश होता देखि तहाँ धर्मघात विचारै सो बिलाव समान श्रोता है। जैसे बिलाव भले दुध को पीव तो नहीं परन्तु ढोल व बासन फोरि डारे। तैसे पुण्यकारी उपदेश को धार तो नांहों परन्तु उपदेश देता देखि द्वेष कर धर्मघात करे सो बिलाव समान श्रोता जानना 1 और जे ऊपर तें उज्ज्वल अन्तरंग मलीन जैसे बगुला ऊपरतें उज्ज्वल अन्तरंग जोवघातक रूप भाव धरै सो तैसे ही कोई जीव बाह्य तो निर्मलवचन विनय सहित भाषः तनमलिन करे धर्मोजन-सा दोनै अरु अन्तरङ्ग मानो क्रोधी कपटी लोभी बहुतनि का बुरा चाह कोऊ का धर्मसेवन देखि द्वेष भाव करै । महा कुआचारो दुर्बुद्धि रौद्रपरिणामी सो धर्मघात चाहै धर्म सेवन नहीं चाह । ऐसा अन्तरङ्ग मलिन ऊपरि त भला सो बगुला समान श्रोता कहिये। तथा और बुलाया बोले तैसे ही बोले । आपमें भाव सहित समझिवे को शक्ति नाहीं। जैसे सूवा को बुलावै वह वैसे ही बोले सो सवा समानि श्रोता कहिये। और मिट्टी को नीर का निमित्त पाई मिट्टो नरम होई तथा अनि का निमित्त पाई जैसे लाख कोमल होई इन दोऊनि का निमित्त छूटै सख्त होई, तैसे हो जिस जीव को जितना काल सत्संग का निमित्त होई तब तो धर्मभाव सहित होय, कोमल होय, दयावान होय और द्रत संयम की भावना करै धर्मात्मा जीवनि सों स्नेह करि उनकी सेवा चाकरी करया चाहै और जब सत्संग का तथा शास्त्रनि का निमित्त नहीं मिले तो कठोर धर्मरहित कर परिणामी होय जावे सी-मिट्री सम्मान तथा लाल समान श्रोता कहिये। और जो सभा में समताभाव सहित तिष्ठ्या शास्त्र का व्याख्यान सुन्या करे और कोई दन्तकथा करता होय तौ ताकी नहीं सुने ।
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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