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________________ श्री 5 टि द्यूत रमना, वेश्यागमन, इत्यादिक कार्य किये पाप होई। ऐसे सुनिकें अभक्ष्य खानेवारा कहे हमारा दोष कह है। सी अभक्ष्य भोजन तजे तो नहीं दोष करि पापबन्ध करि घर जावे । जुवारी ऐसा समझे जो मेरा सु दोष सुन्या है सो प्रगट करें है ऐसा जानि सभा छोड़े। इत्यादिक गुण तो नहीं लेय अरु अवगुण लेवे सौ चालनी सामान आता है। रसभावतो नाना प्रकार चर्चा करै धर्मकथा अनेक यादि राखे । अनेक गाथा, काव्य, छन्द, कवित्त इनको पदं तिनको अर्थ औरनि को समुझावै इत्यादिक वाह्य तैं तो धर्मात्मा-सा दीखै । अरु अन्तरंग धर्म इच्छा रहित, महा क्रोध, मान, माया, लोभ करि सहित, शुद्ध धर्म का निन्दक, धर्मात्मा जीवन का निन्दक कुदेव कुगुरु का प्रशंसक, पावरस करि भोजता, अन्तरंग धर्म भावना रहित होय सो मसकसमान श्रोता है। जैसे मसक रीती (खाली) में पवन भरि मोटी करी सो ऊपरि तैं तो जलभरी भासे । अन्तरंग धूम तैं भरी तथा पवन ते भरी सो ऐसे श्रोता खाली मसकसमान जानना । ६ । जैसे सर्प को दूध पिलाइये तो महादुखदायी विष होय तैसे काहू को अमृतसमानि जिनवचन सुनाइये तौ तिनको सुनि भी पापात्मा पाप का बन्ध करें जैसे कहीं कुकार्यनि की निन्दा निकसै तथा शास्त्रनि विषै खोटे खान-पान की निन्दा का कथन होई तथा क्रोधादि कषायनि की निन्दा तथा सप्तव्यसनि की निन्दा इत्यादिक जाति विरोधी, कर्म विरोधी, पंचविरोधी क्रिया पापकारी है सो विवेकीन को तजना योग्य है । ऐसा कथन शास्त्रनि विणें चलता होई ताके सुने जीव पापकार्य तज, धर्म के मार्ग चलें। इस भव जस पावै, परभव सुखी होई। ऐसे कथन गुणकारी अमृतिसमानि सुनिजो पापाचारी अशुभ आत्मा, द्वेष करै, ऐसा समझे जो यह अवगुण अब हममें हैं सो रा सर्वदृष्टान्त कथन किया सो हमारे ऊपर किया ऐसा विचारि, धर्मद्वेषी होय सो सर्प समानि श्रोता है । ७ । जैसे भैंसा, सरोवर के जल में जावे सो पानी पोवै तो थोरा परन्तु गन्धीय के सर्व जल मलीन करें। और पीवने के योग्य ना राखै, सर्व के तन तथा अपना तन मलीन करें तैसे ही सभा वि जिनवाणी का कथन महानिर्मलता को सुनि भव्य पाप तैं उदास होई धर्म चाह । धर्म की प्रशंसा और धर्मात्मा जीवनि की प्रशंसा करि अनुमोदना तैं पुण्य का बन्ध करै महाहर्ष मानै। तहां अनेक जाति के प्रश्न उत्तर होतें अनेक जीवनि के संशय जांय, ज्ञान की बढ़वारी होय । ताकरि शुद्धतत्व २२ २२ त रं गि णी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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