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________________ चित्त नरम होय, सज्जन-स्वभावी होय, सर्व के भले का वांच्छुक होथ इत्यादि उत्तम गुण जाके होंय । तातै दया भाव पलें है और जे दुष्ट परिणामी, वहुत का बुरावांच्नु नै हारे जीवन से दया नहीं पलें। ताते ऊपर के कहे। सु। किसब तिन सबतें दया-भाव नहीं बने। ते मनुष्य दक्षः रहित हैं। सो विकासको, इनका सा करना योग्य नाही तथा दया रहित हैं, तिनके साथ लेन-देन, विश्वास भी योग्य नाहीं। इनके संग तें, वणिज तें, विश्वास से, कुबुद्धि होय। अपने परिणाम निर्दयो होय। हिसा कै-सा दोष लाग। वाते नरकादिक दुख होय। यहाँ प्रश्नजो तुमनें कहो कि ऊँच-कुलीन से दया होय, नीच-कुलीन नहीं सधै। सो संसार में तो देखिये है जो घने ऊँचकुलीन हिंसक, जीव घातक, अनाचार रूप भावादि सहित, निर्दयो हैं और केई नीच-कुलो, अपने योग्य ज्ञानप्रमारा सुमार्गी-दयावान दीखें हैं। यहाँ नियम तो नाही भया । ताका सनाधान-हे भव्य ! तैने कही सो प्रमाण है। परन्तु जैसे—कोई रतन की खानि है। तामैं रतन निकसैं हैं। ताके संग अनेक अन्य पाषाण भी निकसैं हैं। परन्तु खानि रतन की ही कहिये और कोई होन पुरुष तैं पाषाणादि निक, तो निकसौ। नियम नाहीं है। तैसे ही ऊँच-कुलीन में दयावान् ही उपज हैं और कोई पूर्व जाका बिगड़ना होय, रोसे पापावारी जीव ऊँच-कुल में हीन-पुण्यो निर्दयी होय, तो नियम नाहीं। रतन खानि में पाषाणवत् जानना और जैसे-पाषाण को खानि में खोदते, कोई रतन निकसै तो निकसौ; परन्तु बहुलता करि खान.पाषाण की है । तैसे नीच-कुलीन मैं पूर्व-पुण्य के जोग तै कोई धर्मात्मा-दयावान् होय, तो नियम नाहीं । जैसे—पाषाण खानित रतन उपजना जानना। किन्तु बहुलता, हीन-कुलन में दया रहित को ही है, रोपा जानना । तातें नीच-कुलन में दयावान् भी होय हैं और ऊँच-कुल में निर्दयी भी होय हैं। यामें नियम नाहों। संसार की अनेक दशा हैं। तातै विवेकीन क, दया-रहित जीवन का निमित्त छोड़ि, दधा-भाव रहना योग्य है। आगे कहैं हैं जो सन्तोषो आत्मा, अपने निर्धनपने तथा दरिद्र पाए मैं, ऐसी भावना मावै है। सो कहिये है| गापा–दालय तवरपसायो, मम सिद्धो भवय अमुत सहु लोप । मम सह लोय पसन्ती, लोए आदाय पाहि मम जोई ॥३३॥ अर्थ-दालय तपय पसायो कहिये, दारिद्रय तेरे प्रसाद तै। मम सिद्धी भवय अमुत्त सहु लोय कहिये, मैं सिद्ध समानि सर्व लोक में अमति समाया। मम सह लोय पसन्ती कहिये, मैं तो सर्व लोक क देखू हूं। लोए २९३
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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