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________________ करता ते द्वेष-भाव ही करें है। यह अपने स्वभाव ताको न तज। जसे—माखी आप मर कर, परको खेद । । उपजावै। ऐसे ही दुष्ट-जन आप मर कर, औरको दुख उपजावै। सो ही कहिये है-जैसे कोऊ दुष्ट-जज्ञानी, । काहू ते कषाय-भाव करि विचारता भया, जो याके घर में धन बहुत है। सो मैं याके शिर कूप-बावड़ी नदी विष, इबिमरौं तथा विष-खाय मरौं तथा छुरी-कटारो खाय मरौं, तौ राज्य याका सर्व-धन खौसि लय लटि लेय। । पञ्च याको, जाति नै निकासें । तब याका जगत में मानभंग होय महादुखी होय। सो देखो, माखी-समान दुष्ट का ज्ञान, जो श्राप मर करके परकौं दुखी किया चाहै। सो दुष्ट तो माखो समान जानि और कोई दुष्ट जोंक के समानि चित्त के धारी होय हैं। जैसे—जौक, गुण जो दुग्ध ताहि तजि, औगुण जो लोह, ताक ग्रहै है। तैसे कोई दुष्टन पै चाहै जैता उपकार करौ। वह सर्वकू भूलि, पीछे औगुण हो ग्रहण करि, उल्टा द्वेष-भाव ही स्वीकार करै है। जैस-स्थान कूकोई चाहे जैसा उपकार करी। भोजन देय, अनेक आभूषण पहिरावो तथा पालको में बैठावो। चाहै-जैसा लाड़ करौ। परन्तु यह अज्ञानी श्वान जब हाथ से छूटेगा तब घरे में ही जाय और कुत्तेन में जाय तिष्ठेगा और भले आभूषण, पालकी के गुण नाहों विचारै है। तैसे दुष्ट भी कभी किए उपकार रूपी आमषरा, तिन सबको भूलि आप सरीखे दुष्ट-नीच पुरुषन का संग करि, दुख ही उपजावेगा तथा सर्व कुं बहत काल ताई दुध प्याय, पुष्ट करि, अनेक प्रकार प्रतिपालना करौ। परन्तु इस सर्प की रक्षा करनहारा कदाचित प्रमाद सहित होय, सर्पकू अपना पाल्या जानि, वातै गाफिल रहेगा, तो यह पापी विष का भरचा सर्प, याकों खायगा। पालनहारे का मारनहारा होयगा। याकै ऐसा विचार नाहों जो याने तो मोहि दुग्ध प्याय पाल्या है। यह पी अपना स्वभाव नाही तजै। तैसे ही दुष्ट जीव पर अनेक उपकार करौ। परन्तु जाका नाम दुष्ट है, सो अपना स्वभाव नाहों तजेगा। यह उपकारी का द्वेषो ही होयगा। ऐसे कहे जो माखी, जौक, सर्प,दुष्ट-जनये चारों सब कू दुखदाई जानना और सांठे (गन्ने) के जेता पेलोगे, ज्यों-ज्यों चिमिटोगे, तो भी त्यों-त्यों मिष्टता ही देयगा और कनक कूजेता अग्नि तपाओगे-जारोगे तेता ही नरम होय, निर्मल-निर्दोष होयगा। तैसे भला शिष्य-विद्यार्थी लौकिक गुरु जो विद्या पढाय वैवाला ताकी मार खाय उपकार मानै। ऐसा विचार जो यह शिक्षादायक गुरु मोपे ऐसा उपकार कर है। जो अपने परिणाम संक्लेश करि मोकों उत्तम धन जो विद्या देय है। २८१
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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