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________________ । तेरह प्रकार भय, सो संसार विष ही हैं. शुद्धात्मा विर्षे नाहीं। ऐसे भय रहित भगवान् कुं, बारम्बार नमस्कार होहु । ऐसे सामान्य शुद्धात्मा का भाव जानना। आगे कहे हैं जो धर्म के प्रसाद, अचेतन आकाश द्रव्य भी भक्ति है। तो इन्न, वो बाकि त भक्ति करे तो क्या आश्चर्य है ? ऐसा कथन कहिये हैगाथा-आदा धम्म पसायो, पण अचेय णगधार क्रय भत्ती । तो सुरणर खग पूजय, को विसमय धम्म सेय सिव कज्जे ॥५२॥ | अर्थ-प्रादा धम्म पसायो कहिये, भो जात्मा! धर्म के प्रसाद तें। राम अचेय कहिये, आकाश अचेतन है सो भी गधार कय मत्ती कहिये, रतन की धारा भक्ति करि करे। तो सुर-गर-खग पूजय कहिये; देव, मनुष्य, विद्याधर पूजै ताको विसमय कहिये, कहा विस्मय है। धम्म सैथ सिव कज्जे कहिये, मोक्ष-अर्थ धर्म । सेवन करि। भावार्थ-भगवान की भक्ति जादि धर्म का फल ऐसा--जो ताके प्रसाद त अवेतन आकाश से भी रतन की धारा की वर्षा होय के, धर्मात्मा जीवन की महिमा प्रगट करै है। सो मान धर्मात्मा जीवन की सेवा ही कर है। इहा प्रश्न आकाश तो जड़ है। सो भक्ति कैसे करे ? रतनधारि तो देव करें हैं। सो यहाँ आकाश की भक्ति कैसे मई १ साका समाधान सो आकाश जड़ तो है। याक भक्ति-भाव कैसे होय, या बात तो प्रमाण है। सर्व जानैं है, चेतना नाहीं। परन्तु धर्म का माहात्म्य रौसा है जो बाकाशमैं तिष्ठते पुद्गल-द्रव्य-स्कन्ध, सो रतनादिक रुप परिणमिकेताकी वर्षा होने लगे है। तात हे भव्य ! जीवन क अतिशय बताने के निमित्त ऐसा कहा है। जो आकाश भी धर्म-प्रसाद ते रतन-धारा वर्षाय, धर्मात्मा जीवन की सेवा करें, तौ चेतन द्रव्य जो देव, चक्री खग, नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र, कामदेव, महामण्डलेश्वरादि राजा रा और भवनपति, ज्योतिषपति, व्यन्तर देव, कल्पवासी, कल्पातीतादि देव र चेतन पदार्थ धर्मप्रसाद तै, धर्मात्मा जीवन की तथा धर्म की सेवा करें, तो अचरज कहा है । करै हो करें। ऐसा जानि भव्य जीवन कौं, धर्म की तथा धर्मो पुरुषन की सेवा भक्ति करना योग्य है। इति । आगे कहै हैं जो ऐसे-ऐसे पुण्याधिकारी, पदस्थवान, पुरुषन के भोग इन्द्रिय सुख ।। हैं सो विनाशिक है। ऐसा दिखाते हैंगाषा-रायपरा महरायो, अधमण्डयमण्डेयमहामण्डो । अघचक्की महचक्की , खगसुर देवाण सपल मुह अथिरो ॥ ५३॥ बर्ध-राजा, महाराजा, अर्ध-मण्डलेश्वर, मण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वर, अर्ध-चक्री, सकल-चनी, सगेश्वर, २७१
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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