SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सु [ fr २७. का घाती होय तथा पर-स्त्री भोगनहारेको इन सप्तव्यसन सहित, पापाचारी, अयोग्य पन्थ के चलनहारे जीवनक लौकिक का भय होय तथा क्रोधी, मानी, दगाबाज, महालोमाचारी, पाखण्डी, ठग, अनाचारी, विश्वासघाती, स्वामी-द्रोही, मित्रद्रोही – इन आदि अनेक कुमार्गीनकू, लोक का भय होय है और जगत् पूज्य, सर्व बल्लभक, लोकालोक ज्ञाता सर्वज्ञकों, वीतराग, अमूर्तिक देवक, लोक का भय नाहीं । ६ । और सरागी, बहु कुटुम्बी, बहु आरम्भी, संसारी, राग-द्वेष सहित, पापाचारीकूं पाप का भय है तिनकू पाप दुखी करे है और वीतरागी, जगत् का पीर हर, पाप-पुण्य संसार मार्ग तातैं रहित कर्म कालिमा वर्जित शुद्धात्मा कूं. पाप का भय नाहीं । इनकूं पाप भघ नाहीं उपजावै है [७] रोग भय ताकों होय जो शरीर आसरे रहनहारे संसारी जीव मोही तन स्थिति सदैव चाहनेंहारा पुद्गल धनधारी जीव तिनकौं रोग का भय होय । पौगलिक काय रहित श्रमूर्ति शुद्ध जीवकौं रोग भय नाहीं । पश्च भय है सो अन्याय पंथवारी पञ्च मर्यादा लोपनहारेको पञ्चन का भय होय है और जगत्नाथ लोक पूज्य पदधारी कूं जगत् मर्यादा का बतावनहारा तथा लोक मर्यादा का चलावनहारा भगवान् कूं पञ्च भय नाहीं || और दुष्ट मनुष्य का भय है। सो पर जीवनतें कोई जीवद्वेष राखे ताका दुष्ट जीव का भय होय और जगत्नाथ निर्दोष, वीतराग, जगत् पूज्य, शुद्धात्मा कौं, दुष्ट मनुष्यन का भय नाहीं । १०। दुष्ट पशून का भय है, सो इन दुष्ट जीव पशु, हस्ती, सिंह, चीता, सुअर, श्वान, मार्जार, बन्दर, सर्प, बिच्छू आादिक दुष्ट जीव है, सो हस्ती आदि तो दन्ती हैं। सिंहादिक नखी. विषी जो सर्पादिक, ए दन्ती, नस्ती विषी इन सर्व दुष्ट पशुन का भय संसारी, सरागी, पुद्गल तन के धारी जीवनको पाप उदय तैं होय है और संसारी दुख रहित, षट् काय का पोर हर अमूर्ति भगवान् कूं दुष्ट पशून का भय नाहीं । इस भगवान् के नाम लेते ही सुमरण करते हो, दुष्ट-पशु आदि के अनेक विघ्र नाश होय। ऐसा जानना । ११ । और यम भय है। सो देव, मनुष्य, नारक, पशु, पुद्गल तन के धारी, संसारी, कर्म-बन्ध सहित, तिन जीवन कौ यम का भय है और अष्ट-कर्म-शरीर रहित, अमूर्ति, जन्म-मरण रहित, शुद्धात्मा कूं यम का भय नाहीं । ३२ । निन्दा भय है सो कुमार्गी, निर्लज्ज, अनेक दोष भरे, अमार्गी जीव, तिनकों जगत् निन्दा का दुख होय और जगत्पूज्य, स्तुति योग्य, जाके गुण गाये कल्याण होय, निर्दोष, शुद्ध परमात्मार्क, निन्दा भय नाहीं । १३। ऐसे कहे जो गि २७० स
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy