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अर्थ — मोतीन की माला धागा के निमित्त कोई मूढ़ अज्ञानी मनुष्य तोड़ि डारै । तैसे हो इन्द्रिय सुख का लोभी मनुष्य आयुरूपी मोतीन को माल तजै है । भावार्थ - जैसे कोई मूर्ख जी गल्या वस्त्र फाटा देखि ताके सीवनेकों तागा ढूंढै था । सो नहीं मिल्या तब मनोहर मोतीन की माला थो। सो ताहि देखि विचारी जो इस वस्त्र सोवनेकों तागा मेरी मोती को माल मैं है । तब तागा निमित्त मूर्ख ने मोतो की माला तोड़ि कैं तागा लेय जीर्ण वस्त्र सीया । सो मोती तागा बिना विखर गये। सो इसकी मूर्खता तो देखो कि जीर्ण वस्त्र के निमित्त मोती को माला वृथा करी । सो यह महामुर्ख जानना । तैसे ही भोले संसारी जीव इन्द्रियन के विनाशिक श्राकुलता सहित सुख रूपी पुराणा वस्त्र तामैं भी जारि जारि फाटि रह्या गल्या जाके राखे लज्जा आवैं। नाख ( फेंक) देने योग्य मलिनता बहुत दिन थिरीभूत राखवे कूं अरु तिसतें अपनी शोभा जानिकेँ आप ज्ञान की मूढ़ता तैं ऐसे ग्लानिकारी इन्द्रिय सुख रूप कपड़ा ताके सीवनेकौं अपने मनुष्य आयुरूपी मोतिन का हार तोड़ि ताके दिन घड़ी रूप तागा काटि विषय सुख कषाय रूप वस्त्र को शाश्वता राखवेकौं सोवता भया । अरु मनुष्यायु रूपो मोतीन का हार शोभा में नहीं समझा। सो आयुष के समय तैई भये मोती तिनकों वृथा खोवता भया । सो इस भूल की कहा कहिये। अब मनुष्य आयु बार-बार कहां है। विषय भोग तौ गति-गति में आये हैं। आगे बहु भोगे हैं। तातें जो मनुष्य आयुरूपी मोतीन का हार तोड़ि तिसके दिन रूपी तागा लेय कैं विषय कषाय रूपी वस्त्र सोंव राखि सुख मानें। ताके ज्ञान को कहां तांई होनता कहिये। जैसे—कोई ज्ञान दरिद्री भोला जीव सुख के निमित्त भ्रमण करते मनुष्य पर्याय रूपो चिन्तामणि मन वांछित सुख का देनेहारा रतन पाया तोकौं अल्पज्ञानी भोला जीव विषय कषायरूपी कोरे चने के लिये बेंचें तथा कोई जीव सुख के निमित्त अनेक देशान्तर भ्रमता-भ्रमता कल्पवृक्ष पावै । ताके पास बाल-बुद्धि हलाहल जहर जांचै। तैसे मनुष्य पर्याय शिव सुख की दाता ताकूं पाय हीन ज्ञानी विषय भोग कालकूट हालाहल जहर जांच हर्ष माने । ऐसे ही मनुष्य आयुरूपी हार तोड़ि-तोड़ि ताका डोरा य विषय कषायमयो वस्त्र का सींवना जानना। आगे अपनी भूल करि आप बन्ध्या है, सो ही दृष्टान्त द्वारा बतायें हैं
गाथा-सुक शालणी कप मुहई, मुकरहि भर्म एत्ति जह साणो । इम वेदण भमभूल, अप्प बंध रायोसावो ॥ ५० ॥
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