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________________ पललानी।२६ मनुष्य ऊँच-नीच कुल तिनमें जैसे-जैसे समय-समय क्रोधादिक कषाय राग-द्वेष भाव का पलटन तिन सबकू केवलज्ञानी जानैं हैं और वर्तमान इनही मनुष्य पर्याय रूप परिणम्या जो युद्धगल स्कन्ध तिन सबकू केवलज्ञानी जाने है और अनन्त अनागत काल वि अनन्ती-अनन्तो मनुष्य पर्याय एक-एक और धारेगा तिनमैं होयंगे । जो-जो रागादि भाव विकल्प ते-ते सर्व केवलज्ञानी जाने हैं और अनागत काल में होयगी जो मनुष्य पर्याय तिन रूप परिणमैंगे जो पुद्गल स्कन्ध तिन सबक केवलज्ञानी जाने हैं। ऐसे कहे जो अतीत अनागत वर्तमान काल सम्बन्धी मनुष्य पर्यायन में अनेक भावन के परिणमन तिन सबको केवलज्ञानी युगपत् जानै है और ऐसे ही राक-एक जीव अनन्त-अनन्त पर्याय नारकी धरि आया। अबार धरै है आगामी और धारैगा। ऐसे तीन काल सम्बन्धी नारक पर्यायन में भये जो माव विकल्प तिस सर्वको केवलज्ञानी जाने और ऐसे अतीत अनागत वर्तमान काल विर्षे एक-एक जीव अनन्त तिर्यंच पर्याय जो एकेन्द्रिय, बेन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, पृथ्वो. आप, तेज, वायु, वनस्पति, इतर-निगोद, नित्य-निगोद-इनके सूक्ष्म बादर रूप पर्याय प्रत्येक वनस्पति सप्रतिष्ठित, अप्रतिष्ठित इत्यादिक तथा अनेक भेदभयो पशु पर्याय और श्वास के अठारहवें भाग आयु के धारी अलब्ध्यपर्याप्त जीव, सैनी-असैनो एक अन्तम हर्त मैं चासठि हजार तीन सौ छत्तीस जन्म-मरण रूप पर्याध तिन सर्व पर्यायनको एक-एक जीव अनन्त-अनन्त बार धरि आया तिनमैं भये जो भाव विकल्प तिन सर्वको केवलज्ञानो जानें हैं और इन पर्याय रूप परिणम्या जो अनन्तकाल तांई पद्धगल स्कन्ध तिनकों केवलज्ञानी जाने हैं। ऐसे च्यारि गति के जीवन के परिणाम और ज्ञानावरणादिक-कर्म रूप भये जो अनन्ते जीवन के भावन का निमित्त पाय पुदगल-कर्म तिनकौं केवलज्ञानी जानैं हैं और पुदगल अनेक रूप भरा हीरा, माशिक, मोती, पत्रा. पारस, मिट्टी. खाक, पाषाण, सप्त धात्वादिक अनेक रूप परिण मैं जो पुटुगल स्कन्ध तिन सबकं केवलज्ञान जाने हैं और तीन काल सम्बन्धी धर्म-द्रव्य, अधर्म-द्रव्य,काल-द्रव्य, आकाश-द्रव्य-इन अमूर्तिक द्रव्यन का षट् गुणी हानि वृद्धिकौं लिये परिणमन तिन परिणमन अंशन केवलज्ञानी जाने हैं। ऐसे अलोक में तिष्ठता लोक तालोक में तिष्ठते षट् द्रव्य के परिणमन तीन काल सम्बन्धी तिन सर्व • केवलज्ञान जाने हैं। इस केवलज्ञान के होते ही अनन्त | चतुष्टय संग ही प्रगट होय हैं। अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसख अरु अनन्तवीर्य। तहाँ ज्ञानावरशीय-कर्म के
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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