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________________ भी रहै है । सो यह जघन्य-शान कौन समय होय है ? सो कहिर है। सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक के उपजने के पहले समय पर्याय नाम जघन्य-ज्ञान होय है । सो सूक्ष्म निगोदिया अपने योग्य एक अन्तर्महूर्त के बटवारे में छः हजार बारह क्षुद्र-भव तिनमैं जन्मता-मरता अत्यन्त संक्लेशिता रूप भ्रमण करता अन्य के क्षुद्र-भव । २५५ दिने यस्ता लिए जो विमा गति रि जन्म घरचा होय ता वक्र गति के पहले समय में जघन्य-ज्ञान होय है। तिसही जीव ता समय स्पर्शन इन्द्रिय का जघन्य मतिज्ञान है । तिसही जीवकै ता समय जघन्य अचक्षु दर्शन होय है। इहां बहुत क्षुद्र-भव के धरते-धरते बधो जो संक्लेशता तिन दुखरुप परिणामन” निमत्तपाय तीव्र अनुभाग लिए ज्ञानावरणादि कर्मन का उदय होते महादुखरूप क्षुद्र-भवों का अन्त क्षुद्र-भव का प्रथम समय विर्षे पर्याय-ज्ञान के अनन्तवें भाग जघन्य-ज्ञान कह्या है। यह ज्ञान अविनाशो है। याका कबहूं नाश नाहीं। ऐसा नियम जानना । पीछे द्वितीयादि समयन में ज्ञान बधता होय है । सो इस जघन्य-ज्ञान विषं अनन्त भाग वृद्धि, असंख्यात भाग वृद्धि, संख्यात भाग वृद्धि, संख्यात गुण वृद्धि, असंख्यात गुण वृद्धि, अनन्त गुरा वृद्धि, यह षट् स्थानरूप महान वृद्धि सम्भवें अनन्त अविभाग प्रतिच्छेद लिए अंश हैं। इहाँ प्रश्र-जो जघन्य-ज्ञान में अनन्त भाग कैसे सम्भवे? ताका समाधान जो अनन्त के अनन्त ही भेद है। तहां चौदहाधारा के कथन में द्विरूपवर्गधारा विष कथन किया है जो अनन्तानन्त वर्गस्थान गए पीछे सर्व जीव राशि का प्रमाण होय है और जीवराशि तें अनन्तगुणी राशि पुद्गल है और पुद्गल राशि तें अनन्त गुणी राशि, तीन काल के समय हैं और सर्व काल समय राशित सर्व आकाश प्रदेश राशि अनन्त गुणी है और सर्व आकाश प्रदेश राशि तें अनन्तानन्त वर्ग राशि गए सूक्ष्म निगोदिधा जोव के जघन्य-ज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदन का प्रमाण होय है। ऐसा मागम में कहा है। तात यामैं अनन्तभाग वृद्धि सम्भवै है ऐसा यह पर्याय-ज्ञान प्रथम भेद जाननाश अब यात अनन्तानन्त अविभाग प्रतिच्छेद बधैं तब पर्याय समास का प्रथम भेद होय । तातै अनन्तानन्त अविभाग प्रतिच्छेद बधैं तब पर्याय समास का दूसरा भेद होय। ऐसे हो अनन्तानन्त अविभाग प्रतिच्छेद बधैं । एक-एक स्थान बधैं सो तीन स्थान पांच आदि असंख्यात लोक प्रमाण षट् स्थान पतित वृद्धि होय तब ताई। पर्याय समास के भेद होय हैं। सो वृद्धि का अनुक्रम ऐसा है जो अनन्त का प्रमाण में तौ जीवराशि जानना।
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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