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________________ उत्कृष्ट जानना और मध्य के अनेक भेद जानना। ऐसे तीन भेद रूप है, सो याका स्वरूप आगे कहेंगे। मूल श्रुत-ज्ञान है ताके दोय भेद हैं। एक तो अक्षरात्मक एक अनारात्मक । तहाँ अक्षर छन्द पद काव्य गाथा फोकी आदि शब्द से उत्पन्न भया सो अक्षरात्मक श्रुत-ज्ञान है और भाव ही ते उपजै अक्षर रूप नाहों, सो अनक्षर श्रुति-शान है। सोरायोन्द्रियादिक पवेन्द्रिय पर्यन्त सर्व ही जीवन के होय । परन्तु इस अनक्षरात्मक ज्ञान तँ कधु व्यवहार प्रवृत्ति नाहीं। जीव के भाव विचार की सो ही जीव जाने तथा केवलो जाने। ताते इसकी मुख्यता नहीं लई और दूसरा अक्षरात्मक-ज्ञान है। तातै कर्म-धर्म कार्यन की प्रवृत्ति होय है । जातें लौकिक मैं लेने-देने रूप खाता रोजनामचादि सर्व व्यवहार कार्य होय हैं और धर्म-शास्त्र का पठन-पाठन प्रवृत्ति सो मी अक्षरात्मकझान तैं होय है। ताकै बीस भेद हैं—सो ही कहिए है। उक्तञ्च श्रीगोम्मटसारजी सिद्धान्त__ गाया-पजायस्वर पदसंघादं पहिवत्ति आणिजोगं च । दुगवार पाहुढंच य पाहुडयं वत्यु पुथ्वं च ॥ ४५ ॥ अर्थ-पर्याय-ज्ञान, अक्षर-ज्ञान, पद-ज्ञान, संघात-ज्ञान, प्रतिपत्तिक-ज्ञान, अनुयोग-ज्ञान, प्राभृतक-प्राभृतकज्ञान प्राभृतक-ज्ञान, वस्तु-ज्ञान और पूर्व-ज्ञान-रा दश भेद भये। सो इन दशन के संग समास लगाय लेना जैसे-पर्याय पर्यायसमास ऐसे सर्व जगह लगाय बीस भेद होय हैं। सो ए बीस भेद अक्षरात्मक श्रुत-शान के जानना। अब श्रुत-ज्ञान काहे कौं कहिये है। ताका स्वरूप कहैं है। सो अक्षर विर्षे जो अर्थ होय ता] जानने रूप जो भाव सो श्रुत-ज्ञान कहिये। ता श्रुत-ज्ञान के ए बीस भेद हैं। तातें इस ज्ञान की घातनहारी वरणी सी भी बीस भेद रूप परिणमि बीस ही मेदरूप श्रुत-ज्ञान कं घाते हैं। तात श्रुत-झानावरणी के भी बीस भेद जानना। अब इन बीसन का सामान्य अर्थ कहिरा है। प्रथम पर्याय-ज्ञान जघन्य भेद है। सो बस्तर के अनन्तवें भाग झान है। इस ज्ञान का आवरण इस ज्ञानकं घात सकता नाही, ऐसा हो अनादि स्वभाव, केवलज्ञान में भास्या है। जो कदाचित् इस ज्ञानकों भी आवरण घाते, तौ ज्ञान का अभाव होय और ज्ञान-गुण के अभाव तें, गुणी र बात्मा का अभाव होय और आत्मा का अभाव भए संसार च्यारि गति का अभाव होय। सो संसार का अभाव तौ कबहूँ होता नाहीं। तातै प्रात्मा के सद्भावतें ज्ञान का सद्भाव है। सो सर्व श्रुत-ज्ञान केवलज्ञानादि सर्व ज्ञान को आवरण घाते। परन्तु इस अक्षर के अनन्तवें भाग ज्ञान को नहीं पाते है। ताते यह ज्ञान निरावरण सदैव ज्ञान का बीसाझान २५४ . .. .
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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