SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अरु भगवान् के विरक्ति नहीं भई। सो कोई निमित्त विचारिये तब इन्द्र नै राक नीलाञ्जना नाम अप्सरा का जायु-कम बहुत ही अल्प जानि. इसको आज्ञा करी। सो ये देवी ने इन्द्र की आज्ञा लेय, भगवान के आगे अद्भुत नृत्य-गान आरम्म्या। सो याके नृत्य कौ देखि, सर्व सभा के देव-मनुष्य आश्चर्य क पावते भये। जो ऐसा नृत्य इन्द्रको भी दुर्लभ है। ऐसे नृत्य करते समय उसका आयु पूरण भया। जिससे आत्मा तौ पर-गति गया। अरु शरीर, दर्पण की छाया के प्रतिबिम्बवत् अदृश्य होय गया। सो नृत्य का उत्सव भंग नहीं होने कू, इन्द्र ने तत्तण वैसी ही देवांगना रचि दई, सो नृत्य की ताल-राम चाल भंग नहीं होने पायी। यह चरित्र सर्व सभा के जीव-मनुष्यादि थे, तिन काहूने नहीं जान्या। सब नै जान्या वही देवी नचै है। अरु इस चरित्र को भगवान ने अवधि तैं जान्या, जो वह देवो नृत्य करतो, काय तजि अन्य लोक गई। यह इन्द्रनै नई रचि दई है। अहो, संसार चपल व विनाशिक है । इत्यादिक प्रकार वैराग्य उपाय, दीक्षा धरि, ध्यानानित कर्मनाश, सिद्ध भये । सो यहां भी देखो, निमित्त ही को महन्तता आई। तातें सत्पुरुषन कू अपने कल्याण कं. कुसङ्ग हेय करि, शुभ निमित्त करना सुखकारी है। जैसे बने तैसे ही भला निमित्त गुणकारी है। ऐसे एतौ जीव कू जीव का निमित्त कह्या। अब पुद्गल का पुदगल तें निमित्त उपादान कहिये है। तहां हल्दी तो स्वभाव तें ही पीत है । याकौ घसिक जल में घोलिए, तो भी पोत ही जल होय । सो ऐसे पोत जल मैं साजी डारिए, | तौ साजी के निमित्त तं सर्व जल, लाल होय है। सो लाल होयने की उपादात शक्ति तो हल्दी की हो है। परन्तु निमित्त साजी का मिले लाल होय हैं और स्फटिक मरिण निर्मल है सो ताके नीचे जैसा डांक दीजिये, तैसाही मणि भासै । लाल डाक दिये, मणि लाल भासै । पोत डांक दिये, मरिण पीत होय । श्याम डांक दिये, मणि श्याम होय । सो मरिण, स्वभावतें तौ महानिर्मल-श्वेत है। परन्तु जैसे डांक का निमित्त मिले है, तैसा ही भासै है । सो लाल, पोत, श्याम होने की उपादान शक्ति तौ उस स्फटिक मणि को है । अरु निमित्त नीचले डांक का है । सो यहां भी निमित्त की प्रधानता आई और जैसे लोहा धातु, नीच धातु है। परन्तु जब ऊँच जो पारस पाषाण का निमित्त मिले, तब कश्चन होय है। सो सुवर्ण होने की उपादान शक्ति तो लोहा ही I में है और धातन में नाहीं। परन्तु जब पारस का निमित्त मिलै तौ सुवर्श होय है । सो हे मव्य ! जीवते, जीवा
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy