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________________ श्री सु [ fit २३९ पौगलिक शरीर रहित सर्वज्ञ पद धारी ज्ञान मूर्ति चेतन चमत्कार लिए ऐसे गुरु का धारी मोक्ष जीव है, सो ऐसा मोत उपादेय है। इस मोक्ष का नाम लिये, सुमरण किये, पूजा किये श्रद्धान किये, आशा किये महापुराय फल होय । तातें परमव में उत्तम पद पाय परम्पराय मोक्ष का वासी होय । तातैं सम्यग्ज्ञान सम्पदा के धारक भव्यात्मा को ऐसा मोक्ष उपादेय है। इति श्री सुदृष्टि तरङ्गिणी नाम ग्रन्थ के मध्य में मोक्ष तत्व विशेय-य-उपादेय का वर्णन करनेवाला अठारहवाँ पर्व सम्पूर्ण हुआ ॥ १८ ॥ आगे ज्ञान विषै ज्ञेय- हेय-उपादेय कहिए हैं गाथा - गेय योदेजी, पाणचय वसु भेय जिणउतं । जाण कुणाणय हेयं, जवादेयं पण सुद्ध जाणन्तु ॥ ४३ ॥ अर्थ- ज्ञेय है- उपादेय करि ज्ञान के आठ भेद है। तीनॐदेय हैं ऐसा जिनदेव ने कह्या । भावार्थ - सु-ज्ञान-कु- ज्ञान का समुच्चय जानना सो तो ज्ञेय हैं और ताही के दो भेद हैं। एक ज्ञान हैय है, एक ज्ञान उपादेय है। तहाँ कु-मति ज्ञान, कुश्रुत ज्ञान, कु-वधि- ज्ञान - रा हैय ज्ञान हैं, सो ही कहिए हैं । जहाँ हिंसा - ज्ञान की चतुराईं होना। जहाँ जीव पकड़ने कूं जाल बनायव का ज्ञान अरु ता ज्ञान तैं फन्दा करना फाँसी, पींजरा, छूरो, कटारी, बरछी, तलवार, बन्दूक इन आदि अनेक हिंसा के कारण शस्त्र बनावना सो कु-ज्ञान है तथा चित्राम, शिल्प-कला, भण्ड-कला, युद्ध-कला, चौर-कला-इनकूं आदि पर के ठगने की अनेक चतुराई को युक्ति का उपजना सो कु-ज्ञान हैं तथा और जीवनका अनेक दुख देने की कला चोर व कुमारगो जीवनको दण्ड देने की कला - चतुराई जो इसकूं ऐसे मारिए तो बहुत दुखी होय इत्यादि ए कुझान है और कौतुक हाँसी अनेक भाव करि परको खुशी करिए तथा नाना प्रकार के स्वांग धारिलोकनकूं आश्चर्य का उपजावना। चोरों व परदारा सेवन में प्रीति भाव इत्यादि ज्ञान की चेष्टा लौकिक मैं प्रवर्तती है, सो कु-पति-ज्ञान ॥ इति कु-मति-ज्ञान । आागे कुश्रुत ज्ञानक कहिए हैं। तहाँ युद्ध शास्त्र का ज्ञान, नाना प्रकार रसिक प्रिय श्रृङ्गार शास्त्र आदि कामोत्पत्ति के कारण इस शास्त्र, सङ्गीत शास्त्रादिककुश्रुत ज्ञान हैं और हिंसा के कारण जिनमें पर-जीव घांत का उपदेश सो कु-श्रुत हैं तथा २३९ ५
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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