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________________ २३८ शून्य है। नहीं कछु सुख, नहीं कछु दुख। शून्य स्वर है। नहीं बोलना, नहीं चालना, नहीं गावना, नहीं खावना, केवल एक शून्यता। ऐसा मोह केई जीव माने हैं। ताको कहिए है। भो मोक्ष के वांछक ! सुनि। अरु विचार दैनि। मुख रहित मान्यता तौ मुख के होय तथा सौते के होय तथा वायु-सन्निपात रोगवाले के होय तथा सुख रहित शून्यता दीन-दरिद्री के होय तथा जाके इष्ट का वियोग होय, शोक करि भर या होय, अज्ञान-मोह तँ जड़ समान होय गया होय तथा काष्ठ पाषाण की मूर्ति, चेतना भाव रहित के होय इत्यादिक स्थानकन मैं शून्यता होय और परमात्मा. शुद्ध निराकार वेतनमति ज्ञान भरडार के मोक्ष में शन्यता नाहों। महासुख सागर मैं मगन हैं। जैते सुख संसार में है तिनतै अनन्तगुरो सुख मोक्ष में हैं। तातें जाका मोक्ष में शन्यता भाव होय सो मोक्ष हेय है। इति हेय मोक्ष। आगे उपादेय मोक्ष कहिए है। भी सुख के अर्थो! तुं चित्त लगाय सुनि। जो आत्मा जन्म-मरण के महादुख न तैं भय खाय, दिगम्बर पद धारि, नाना तय करि, कर्म बन्धन छेद, मोक्ष को प्राप्त मया, सो अब जन्म-मरण ते रहित होय भव बन्धन तैं छूटा, मोक्ष के ध्रव स्थान विर्षे तिष्ठया, सो आवागमन का महादुख मिटाय सुखी भया और मोक्ष वि राग-द्वेष का अभाव होते महासुख होय है। रा राग-द्वेष हैं सो हो महादुख हैं, सो मोक्ष में रा राग-द्वेष नाहों। मोक्ष जीव अनन्त सुख का धारी है। जे संसारिक इन्द्रियजनित सुन हैं, सो सर्व विनाशिक हैं। क्षणभंगुर व पराधीन हैं। सो इन्द्र, चक्री, कामदेव, नारायण, बलभद्र और अहमिन्द्रादिक-ए सर्व देव मनुष्यन के अनन्तकाल का सुख है। तिस सुख तें भी अनन्तगुणा अतीन्द्रिय सुख मोक्ष का सुख है। तात मोक्ष सुख इन्द्रिय रहित है। तातें ही उपादेय है। अर मोक्ष जीव विकल्प रहित एके काल सर्व जगत के पदार्थन का स्वरुप जान है और विकल्प है सो जो हीन ज्ञानी व हीन शक्ति होय तिनकै होय है। तातै अनन्तज्ञान शक्ति का धारी परमात्मा के विकल्प नाहों और सर्व द्रव्य कर्म परित का नाशि करि तज्या है औदारिकादि पौद्गलिक स्कन्धमयी शरीर जानै सो सिद्ध पद का धारी सिद्ध जीव सो अमूर्तिक है। निरञ्जन दशा धरै सुख का पिण्ड है और केवलज्ञान केवलदर्शन करि सर्व लोकालोक का वैत्ता है। र सर्वज्ञ वीतराग घट-घट के अन्तर्यामी भवसागर के तारक हैं और चैतन्य सदैव आनन्द मूर्ति जड़त्व भाव जो शून्यता दशा तातै रहित हैं। ऐसे जन्म-मरण रहित राग-द्वेष वर्जित अतीन्द्रिय सुख का भोगी विकल्प रहित निराकार २३८
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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