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________________ ----- नाम पर्वत है। तहां तें साढ़े तीन कोड़ि मुनि निरंजन भये, तात यह मांगलिक तीर्थ पूज्य है तथा कोटिशिला बोत पांच सौ कलिंग देश के राजा अरु दशरथजी के कैतेक पुत्रनकों आदि दे एक कोड़ि मुनि सिद्ध भए । २२९ मु ताते उत्तम तीर्थ है तथा पञ्चमेरु ते अनेक चारण मुनि सिद्ध भये तात तीर्थ है तथा इस ही अढ़ाई द्वीप मैं र अनेक अतिशय तीर्थ हैं तथा नन्दीश्वर द्वीप आदि अनेक तीन लोक क्षेत्र विय, अकृत्रिम जिन मन्दिर हैं, सो "|| तीर्थ हैं तथा और तप-ज्ञान निर्वाण-कल्याणादि अनेक स्थान हैं। जो सर्व पूजने योग्य हैं. शुद्ध तीर्थ हैं ऐसे कहे जे सकल तीर्थ सो सम्यग्दृष्टिन करि पूजन योग्य तीर्थ हैं तथा राग-द्वेष क्रोधादि कषाय रहित शुद्ध पद दयामयी भाव, निर्मल भाव सो उत्कृष्ट निकट तीर्थ हैं। इन तीर्थन की वीतरागी मुनीश्वर भी वन्दना हेतु यात्रा करें, तो सरामी सम्यग्दृष्टि गृहस्थो हैं। सो उन्हें ऐसे तीर्थन की वन्दना करि अपने लाग्या जो अनादि पाप-मैल, ताकी तीर्थ-जल करि धोय, शुद्ध-पवित्र होना, योग्य ही है। र कहे तीर्थ जिनके किए पाप नाश होय, कषाय मन्द होय, सुबुद्धि प्रकाश होय । तातै ए कहे तीर्थ सो यति-श्रावकन करि पूजने योग्य हैं। तातें उपादेय हैं। इति सुतीर्थ । आगे कुतोर्थ का लक्षण कहिए हैं । तहां केतक भोले-प्राणी जे पुण्य-उदय रहित हैं ते औरन• अनेक राज-भोग भोगते देख, लोभाचारी विषय पोखने वांच्छित सुखक उद्यम करता, काहू अज्ञान गुरु की पूछया। वान या मूर्ख जानि बहकाया । जो तू नहादीर्घ जल के समूह में प्रवेश करि, जल पातन (मरन) करे, तो यह बड़ा तीर्थ है। केतेक भोले प्राणी धन, राज, स्त्री, तन सम्बन्धी अनेक वांच्छित भोग के अमिलाषी होय । काहू कौतुको पुरुषक पूछया, जो वांच्छिन सुख र कैसे मिले ? तब तिस निर्दयीनै कौतुक हेतु, याकौं मूर्ख जानिक कहीं । जो जलती अग्निमैं निःशङ्क होय प्रवेश करै, अपना तन भस्म करें, तो या उत्तम तीर्थ के फलत तोक वांच्छित भोग मिल। सो तू अग्नि-तीर्थ भला जानि। रोसा जान, बाल बुद्धि, लोमो, अग्नि हो मैं प्रवेश करि, तीर्थ मानते भये । सो हे सुबुद्धि ! अग्नि प्रवेश तीर्थ सुबुद्धोन के करने का नहीं है। सो कुतीर्थ हेय जानना और केई भोले जीव ज्ञान-धन रहित सुन्दर खीन के भोग की इच्छावाले ने काहू कू पूछी। जो सुन्दर स्त्री-भोग कैसे मिले ? तब याकू ज्ञान हीन जानि काहू निर्दयी : कौतुक निमित्त करि बहका दिया। कही हे भाई! जो शस्त्रधारा तीर्थ बड़ा है। सो तूं शस्त्र के मुख निशङ्क होय मरण करे तो तोकू २२९
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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