SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म है। सर्वज्ञपने ते कछू छिपा नाहीं। वीतराग भावन तँ जैसा भासै जैसा का तैसा कहै । और की और नाहीं काह । सो ऐसे भगवान के य: प्रनाम हैं। इनके नास वचन ही का नाम शुद्ध मार्गखूप भला धर्म है। सो हो। २२६ धर्म यथार्थ सत्य है। या धर्म मैं कहे जो पदार्थ सो प्रमाण हैं। ये ही धर्म पूजने योग्य उपादेय है। इस ही धर्म प्रमाण जो दीक्षा के धरनहारे दिगम्बर वीतराग इन्द्रियन सुखनत विमुख आत्मरस के स्वादी तपसी नगन तन धारी षटकाय के रक्षक बिन कारण जगत् बन्धु मोन अभिलाषी और के हित वांछक सो ऐसे गुरु पूज्य हैं उपादेय हैं । रोसे कहे जे देव-धर्म-गुरु इनकी पूजा है सो सुपूजा है। सम्यग्दृष्टिन करि उपादेय है । इति सुपूजा। आगे कुपुजा कहिये है। तहां ऊपरि कहिं आये देव-धर्म-गुरु का स्वरूप तिसत विपरीत जो अपनी सेवा पूजा प्रशंसा करै जासूसन्तुष्ट होय ताकं कहे तोकं धन हौं। जो आपको सेवा चाकरी शुश्रूषा नहीं करै तौ अपनी भक्ति से विमुख, आपका निन्दक जानै ताकी डरावै। कहे-याकौं रोगी करौं, याका धन-पुत्र हरौं, याकौं बहुत दुखी करूँगा। ऐसे किसी ते राग, किसी ते द्वेष करनहारा देव, सो सरागी संसारी है, हेय है। इनकी पूजा सो कपूजा है। देव तौ कहावे, अरु गई वस्तु कू खोजता फिरें, नहीं मिले तो शोक कर, ऐसे अज्ञानी देव, मोही देवन की पूजा है, सो कपूजा है तथा और के मारने निमित्त अवधि धारि, विकराल रूप बनाय, सुमट-सा दी। जाको छवि देखि, जीवन कौं भय होय। ऐते भयानक देव की पूजा है, सो कपूजा है। जिन सरागी देवों की छवि देखे, भगत जगत् के जीव, तिनकू कामचेष्टा होय, सरागता बढ़े। स्त्री संगम आदि जनेक इन्द्रिय भोग याद बावै। ऐसे विकारी देवन की पूजा है, सो कुपूजा है। इन्हीं कुदेव सरागौन के उपदेशे शास्त्र, चमत्कार रूप फाँसी कुंधरे, हिंसा आरम्भ के प्ररूपणहारे शास्त्र, तिनकं सुने इन्द्रिय मोग की अभिलाषा रूपी अग्नि प्रगट होय। श्रोतानि का चित्त स्त्रोन के भोग रूप होय, ऐसे विकार भाव का उपजावनहारा कथन जिन शास्त्रन मैं होय, तिन शास्त्रन की पूजा सो कुपूजा हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ सहित परिग्रही, गृहस्थ समान पापारम्भ कुशील-असंयम के धारी अपनी महिमा बढ़ाई-सत्कार-पूजा के वच्छिक अनेक भैष धरनहारे, जन्नतन्त्र का चमत्कार भोले जीवनकं बताय अपना गुरुपद मनावतें होय तथा ज्योतिष-वैद्यकादि विद्याकरि राजानकं रिझाये की अभिलाषाधारी, याचना व्रतको लिए विषयाभिलाषी, मोही घर तजे पीछे भी लौकिक गृहस्थन की
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy