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असहाई निर्धन होय ऐसे जीवन कौं रोग वेदना देखि धर्मात्मा पुरुष अपना चित करुणा रूप करि औषधि करना जतन करना सो औषधि दान है। याके फल ते शरीर निरोग होय।२१ जहाँ मुनि अजिका श्रावकादिक। धर्मात्मा पुरुषन के पठन-पाठन कौं शास्त्र देना, सो शास्त्र दान है सो लिखाय देना तथा आप लिख देना तथा अन्य भव्य जीवन को धर्मोपदेश देय धर्म विर्षे सन्मुख करना पड़ावना भले बतावना सो शास्त्र दान है। थाके फलतें अतिशय ज्ञान का धारी होय जहां अन्य जीवन का दुख मैटि सुखी करना कोई दुष्ट दीन-जीव पशुमनुष्यादिक को मारता होय तो अपनी शक्ति प्रमाण ज्ञान, धन, बल, हुक्मादिक करि मारते कं बचावना। आप कोई जीवन की नहीं सतावना सर्व कू सुखी करना। सर्व जीवन ते मैत्री-भाव रखि सर्वको सुखी चाहना सो समय-दान है। गाके पान ने भाग अग्य पद जो मोक्ष पद ताहि पावै तथा कोई भव धरना होय तौ देव इन्द्रादि पद पावै तथा मनुष्य होय तौ चक्रो, त्रिखण्डी, भटादि महायोधा दोघ आयु का धारी होय। ऐसा फल अभयदान का जानना। यह अभय-दान है।४। ए च्यारि प्रकार दान हैं सो शुभ दान हैं। एदान सम्यग्दृष्टिन करि उपादेय हैं। इति दान मैं ज्ञेय-हेय-उपादेय कथन। आगे पात्र विर्षे ज्ञेय-हेय-उपादेय कहिर है। तहां समुच्चय सु-पात्र-कु-पात्र के भेद का जानना सो तौ नेथ है । ताही ज्ञेय के दीय भेद हैं। एक स-पात्र है एक अशुभ-पात्र है। तहां अशुभ के भेद दोय हैं। एक अ-मात्र एक कु-पात्र । तहां कु-पात्र के तीन भेद हैं। जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट । तहाँ वाह्य अट्ठाईस मूलगुण धारी होय और अन्तरङ्ग सम्यक रहित होय सो उत्कृष्ट कु-पात्र है। बाह्य श्रावक व्रत का धारी ग्यारह प्रतिमा विर्षे प्रवर्तता शुभाचारी, धर्मध्यानी, जिन-आझा प्रमाण श्रावक क्रिया सहित किन्तु सम्यक रहित सो मध्यम कु-पात्र है। व्यवहार सम्धक देव-गुरु-धर्म की दृढ़ प्रतीति सहित होय, किन्तु भेद-ज्ञान रहित, अनन्तानुबन्धी की चार और दर्शनमोह की तीन रोसी सब सात प्रकृति के क्षयोपशम रहित निश्चय सम्यक जाकै नाही, सो जघन्य कु-पात्र है। यह आप षद्रव्य, नवपदार्थ, पञ्चास्तिकाय के नाम और कौं कहै । धर्म वांच्छा सहित, पाप क्रिया विमुख. निश्चय-भाव भेद-ज्ञान करि आपा-पर के गुण भेद से विमुख, सम्यक रहित, अविरत गृहस्थ, सी जघन्य कु-पात्र है। र तीन भेद कु-पात्र हैं। सो औरत कं मोक्ष-राह बतावै. किन्तु आप मोक्ष-सह नहीं लागे हैं। इन्हें मोक्ष-मार्ग का सुख नाहीं। जैसे-राजा का रसोइया अनेक प्रकार