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________________ लेनेवालों को अपनी चौकस कर लेना योग्य है। काहू के कहने मैं नहीं जाय। तैसे ही धर्म दुकान अनेक हैं। अपने-अपने घृतकौ सर्व उत्तम मान हैं। परन्तु धर्मालग नीम पनी बुद्धि के मा वारिीक्षा कारे लाल रख २२० दया सहित व्रत होय, सो करना। तिनका स्वरूप उपरि कहि आये हैं। अनेक शुभ व्रत हैं व अनेक अशुभ वत हैं। इनकी परीक्षा निमित्त अनेक वतन का लक्षण कया है। तात परख करना। इनका विशेष आगे वत प्रतिमा मैं कथन करेंगे तहां त जानना। इति व्रत विष ज्ञय-हेय-उपादेय कथन। आगे दान विषं ज्ञेय-हेयउपादेय कहिये है। तहां समुच्चय शुभाशुभ दान का जानना सो तौ ज्ञेय है। ताही ज्ञेय के दोय भेद हैं। एक सु-दान ज्ञेय तौ उपादेय है। दुसरा कु-दान ज्ञेय सो हेय है। सो प्रथम दान का लक्षण कहिये है । सो जाके देते चित्त महाभक्तिरूप होय सो दान हैं तथा दान को देते चित्त दयामयी होय सो दान है और जाके देते मनमैं नहीं तौ भक्ति-भाव होय नहीं दया-भाव होय सो दान देना रोसा है। जैसा राजा को दण्ड देना । रा दान दण्ड समान है सो कु-दान जानना। जैसे काहू के तन पंपोड़ा आई होय तब लोभी पुरुष रोगो कू भोला जानि या कहै। जो हाथी का दान देय तथा घोड़े का दान देय तोड़ागाथ-रथ का दान देय। इसी प्रकार विषय-सेवन के स्थान घर सो मन्दिर दान, सुवर्ण-चाँदी दान, विषय-सेवन को दासी-दास दान, स्त्री का दान, कन्या दान, धरतो दान, तिल दान, उड़द दान, श्यामवस्त्र दान, तेल दान इत्यादिक दान जो हैं, सो लोभी जीवन के तौ प्ररूपे हैं।' अरु भोले जीवन कौं अज्ञान जानि कहैं हैं। सो कु-दान हैं। सो विवेकीन कौ तजना योग्य है। इति कु-दान। आगे सु-दान-तहां सु-दान के च्यारि भेद हैं। भोजन दान, औषधि दान, शास्त्र दान और अभय दान । अब इनका अर्थ-तहां अपने निमित्त भोजन किया तामैं ते पहले मुनिकों तथा त्यागी-श्रावक कौँ तथा अर्जिका कौं यथायोग्य महाहर्ष धारि विनय सहित दान देना, सो भोजन दान है तथा कोई यति श्रावकादिक का निमित्त नहीं ||त होय तो दोन बूढ़ा, बालक, रक भूखा, अशक्त, अन्धा, लूला-इन आदिक कौं असहाय देखि इनके तन की ! रक्षाकौं करुणा भाव सहित अत्र दान देना, सो याका नाम भोजन दान है । याके फलसे सदा सुखी होय अत्र-धन २२० ।। बहुत होय अन्न बहुतन कौं देय खानवारा उदार चित्त का धारी होय। २१ जहाँ मुनि, आणिका, श्रावक, त्यागी पी इनके तन पीड़ा देखि इन योग्य प्रासुक औषधि देना तथा कोई गरीब, रत, भूखा, दुखिया, बालक, वृद्धादि
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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