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________________ तिनकी प्रवृत्ति नहीं होय। जहां व्रत दिन चूत खेलना मने किया होय । व्रतमैं मांस भक्षण नहीं कहा होय। जिन व्रतन, मदिरापान नहीं होय। जिन व्रतनमें वेश्यादिक कुट्टनी का सेवना नृत्यादि देखना नहीं होय, सो शुभ व्रत || २१८ हैं जिन व्रतनमैं दोन जीवन की हिंसा तजि, दया कही होय तथा जिनमैं मनुष्य-घात, भैंसा-यात, बकरी-घातादिक खेटक क्रिया नहीं होय, सो शुभ व्रत हैं। जिन व्रतनमैं पराई वस्तु को चोरी नहीं कही होय। जिनमैं पर-स्त्रीन का सेवन, पर-स्वीनकों रति दानादिक कुशील क्रिया जामैं नहीं होय, सो सुव्रत हैं। जिन वतन मैं तन धोवना, सपरना अभक्ष्य खावना, कुशब्द बोलना, नहीं कहा होय सो शुभ वत हैं। जिन वतनमैं शस्त्र चलावना नाहीं कह्या होय, सो शुभ वत हैं। जिन वतन में शस्त्र चलावना नाहों का होय तथा पाषाण चलाधना मिट्टी राखबगरावना नहीं होय सो सुवत हैं पाखण्ड रहित होय क्रोध, मान, माया, लोम इत्यादिक दोष रहित होय सो शद्ध वत हैं। जावत के किए परिणाम समता सहित सोसवत हैं। जिसवतमस्कैन्द्रिय दिवस-श्यावर जीवन की दया रूप क्रिया होय सो शुभ वृत हैं और दान, पूजा, शील, संयम, तप इन सहित होंय सो सुव्रत हैं। तिन वतन के भेद बारह हैं। तिनके नाम पञ्च अणुवत हैं। तहां अहिंसायुक्त, सत्यायुक्त, अचौर्याणुवत, ब्रह्मचर्याणवत और परिग्रहत्यागाणुवत। र पञ्च अणुक्त हैं। जहां राकोदेश हिंसा का त्याग तहां स हिंसा का तो सर्व प्रकार त्याग होय और स्थावर हिंसा के आरम्भ मैं दया भाव सहित प्रवर्तना सो अहिंसाणवत है जहाँ भूठ बोले राजा दण्ड दे पञ्च मं. ऐसी तोव झूठ का त्याग सो सत्यागवत है ।। जाके किए राज दण्डै पञ्चलोक मंडै ऐसी तीव झूठ का त्याग सो अचौर्याणवत है।३। बड़ी-पर-स्त्री माता सम बरोबर भनी सम लघु पुत्री सम चिन्तन करि तजै तिनमैं विकार भाव का त्याग घर को-परणी स्त्री के संभोग मैं तीव तृष्णा का त्याग सो ब्रह्मचर्याणवत है । ४। वर्तमान समय अपने पुण्य प्रमाण परिग्रह मैं तं कछु घटायक ताका त्याग सो परिग्रह त्यागारावत है। ऐसे पञ्च अणवत हैं। आगे च्यारि शिक्षावत कहिरा हैं। सामायिक, प्रोषथोपवास, भोगीपभोग परिमारा और अतिथिसंविभाग। आगे इनका अर्थ-इन वतों की समानरूप क्रिया है, तातं इनका नाम शिक्षावत है। तहां तीन काल सामायिक की विधि की साधना सो सामायिक शिक्षावत है। आठे चौदश के दिन सोलह प्रहर का पापारम्भ का त्यागरूप एक स्थानमैं धर्म ध्यान सहित प्रतिज्ञा का साधन सो प्रोषधोपवास २१८
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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