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________________ सु भाव विर्षे ज्ञेय-हेय-उपादेय कहिये है। तहाँ शुभाशम भावना का समुच्चय जानना, सो नेश भाव है। ताही झंय के दोय भेद हैं। काभ-गह गक अशुभ-भाव । तहां क्रोच-भाव, मान-भाव, माया-भाव, लोम-भाव, || २०६ सनव्यसन-भाव, धूत-भाव, अमक्ष्य-भक्षण-भाव, सुरापान-भाव, वेश्यागमन-भाव, पापार्घ जो जीव हिंसा-भाव, पर-द्रव्यादि हरण जो-चौर-भाव पर-स्त्रीनसंग-कुशील-भाव, धर्म-घातक-भाव इत्यादिक कु-भाव तजवे योग्य हेय हैं। व्रत भजन-भाव, तप-शील-संघम दया-मार्ग के मान-भाव, पाखण्ड-भाव इत्यादिक दुराचारभाव हैं, सो विवेको जीवन करि तजवे योग्य हैं। इति हेय-भाव। आगे उपादेय भाव-तहां ऊपरि कहै जो कु-भाव तिनतँ विपरीत माव जो तप-भाव, दान-भाव, शील-भाव, पूजा-माव पर-वस्तु त्याग रूप जेसन्तोष-भाव, वीतराग-भाव, शुद्धोपयोग-भाव, तीर्थ-वन्दनारूप-भाव, करुणा-भाव, सर्वहित-भाव, सर्व जीवतें मैत्री-भाव, गुणीते प्रमोद-भाव, माध्यस्थ-भाव सो जहां दुखित दीन जीव, दरिद्री रोगी इत्यादिक कू देखि कोमल-भाव रावना, सो करुणा-भाव है और सर्व जीवन कं आप समान जानि सर्व की रक्षा करनी सो मैत्री-भाव है और भापत गुणाधिक क देखि हर्ष उपजना, सो प्रमोद-भाव है और पापी, पाखण्डी. दुराचारी, धर्म-द्रोही, अन्याई, कृतघ्री, स्वामी-द्रोही. मित्र-द्रोही, विश्वासवाती इत्यादि दुष्ट जीवकू देखि, राग-भावद्वेष-भाव नहीं करना, सो माध्यस्थ-भाव है। विनय-भाव, प्रभावना देखि प्रभावना करवं रूप भाव इत्यादिक शुभ-भाव हैं । सो विवेकी पुरुष की उपादेय हैं तथा सम्यग्दृष्टिन के सहज ही उपादेय हैं । इति भाव । ऐसे द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव करि, भेदन मैं हेय-उपादेय कथन। आगे तप विष ज्ञेय-हेय-उपादेय कहिर है। ___ गाथा-पणमग्गि आदि कुतव द्वादश तवोय कम्म पगवज्जो । चउ गई हेउ कुतको सुह तयजीव स्वखु पादेओ ॥ ४०॥ अर्थ-तहां पञ्चाग्नि आदि संसार कारण, कु-तप हैं और अनशनादि बारह तय सु-तप हैं, सो कर्म | पर्वतन कौं वज्र समान हैं । तारौं जे हिंसा सहित, जीव घातक तप हैं, सो तजवे योग्य हैं और दया सहित, जीव रक्षाकारी सु-तप उपादेय हैं। भावार्थ-1प मैदन मैं समुच्चय तर का जानना सो तो ज्ञेय है। ताही के दोय मेद हैं। एक हेय तप और एक उपादेय तप । तहां पंचाग्नि वतन के नख केश बढ़ावना तप सो कु-तप हेय है। ऊर्व मुख तप भूमि गड़ना तप, तरु झलना तप, भोजन सहित उपवास मानना तप, दिन को अन्न २०६
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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