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________________ तहां शुभाशुभ समुच्चय काल का जानना सो ज्ञेय है। ताके दोय भेद हैं। एक हेय है, एक उपादेय है। तहां ।। | तीर्थङ्कर के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण-रा पञ्च कल्याएकन के काल हैं, सो उपादेय हैं। रा शुभ काल || २०५ हैं तथा अष्टालिका आदि बड़ी प्रभावना उत्सव के काल तथा भादवांजो आदि संधम के दिन, संवर सहित रहने के दिन तथा आठ चौदश पर्व के दिन तथा जिस दिन उपवास, एक अन्तर, बेला. तेलादि तप दिन सो यह सब काल उपादेय हैं तथा जिस समय अपनी परिणति भलो होय, शुम धर्यध्यानरूप, शास्त्र अभ्यासरूप, तपरूप, संथम शीलरूप, समता भावरूप इत्यादिक अपने मावन की विशद्धता रूप काल सो शुभकाल उपादेय है। तजवै योग्य जो खोटे पर्व होय। हिंसा का काल होय तथा जिस समय क्रोध, मान, माया, लोभ की तीव्रता होय। तीन वेदन मैं कोई वैद का दीड पट्य होय. सोसमा कालमेघ तथा कलमकारी पर्व होय, जिस पर्व का निमित्त पाय भले जीव विपरीत बुद्धि होंय। ऐसा मानें, जो आज वर्ष दिन के त्योहार का समय है। या मैं ऐसी खोटी चेष्टा होय। ऐसे पर्वकाल हेय हैं और जिस काल में कोई दया रहित कठोर परिणामो ऐसा विचारै जो अाज का बडा दिन है। यामैं जीव घात किये बडा पुण्य होय है। आगे बड़े करते आये है। ऐसी जानि तिस दिन पापरू परिणमैं, सो काल हेय है। कोई ज्ञान धन रहित भोरे जीव ऐसा मान, जो आज का दिन-मास मला है। इन दिनों में नदी, सरोवर, वायीन मैं जाय, जनगाले जल मैं सान करै तो बड़ा पुरघ है तथा वृक्षन मैं लाय जल डारिए तौ पुण्य होय, ऐसी क्रिया करना जिन दिनों में कही होय, सो पर्व हेय है। कई मिथ्या रस भीजे जीव ऐसा समझे हैं। जो या पर्व मैं वनस्पति काटिये. छेदिये, पता-फूल तोड़ि देवादिक कौ चढ़ाईये, तो बड़ा पुण्य होय। रोसे पर्व काल भी हेय हैं केतक भोरे जीव ऐसा माने हैं, जो आज दिन र पर्व ऐसा है, इन दिनों मैं अपने घर का भोजन नहीं खाईये । घर के वस्त्र नहीं पहरिथे। परतें भीख मांग के खाइये व वस्त्र पहरिये, तौ भला फल होय, रोसे पर्व-काल भी हेय है तथा जगत, अज्ञान दुख करि भरचा ऐसा मानें हैं। जो कोई व्यन्तरादि देवता तथा कोऊ कुगुरु आदिक के चमत्कार का दिन जानि कहैं, जो फलाने की तीर्थ-यात्रा का । काल है । इत्यादिक काल सम्यग्दृष्टि तें सहज ही हेय है तथा पाँचौं-छठा काल की प्रवृत्ति हेय है। इत्यादिक पापकारी धर्म-रहित दिन-पर्व-काल सो हेय है, तजवे योग्य हैं। इति काल विबै क्षेध-हेय-उपादेय कथन । आगे
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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