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________________ २०३ असंख्यात लोक प्रमाण पुलवी हैं। एक-एक पुलवी मैं असंख्यात-असंख्यात लोक प्रमारा शरीर हैं। एक-एक शरीर में जातजनन्त जीव है। एक-एक शरीर मैं जाव घड़ी-घड़ी मैं अनन्त-अनन्त निकसि मोक्ष जाया करें सो ऐसे अनन्तकाल तांई मोक्ष जाया करें, तो भी एक शरीर खाली नहीं होय । तात वाका नाम अक्षय अनन्त है। ऐसे सूजी के असी प्रमाण साधारण निगोद के जीवन की दीर्घता है। रोसो निगोद तें तीन लोक भरचा है। कोई भोरे जीव ऐसा माने हैं। जो सातवें नरक के नीचे पांच गोलक हैं, तह निगोदियान का स्थान है। सो है भव्य ! हो, ऐसा नाही है। र भ्रम है। पञ्च गोलक तौ राक स्कन्ध मैं ऊपर कही, तैसे हैं। या सर्व लोक मैं || निगोदि राशि जल के घटवत् भरी है । ता निगोद के दीय भेद हैं। एक तो नित्य-निगोदि एक इतर-निगोदि है। सो अनन्तकाल से जानै व्यवहार राशि स्पर्शी हो नाहीं सो तौ नित्य-निगोद कहिरा और जै जीव निगोदि तें निकसि व्यवहार राशि च्यारि गति पाय फेरि कर्म से निगोदि मैं गया सो इतर-निगोदिया कहिए । ऐसे निगोदि आदि पंचेन्द्रिय पर्यन्त जे जीव हैं सौ इन षट्रकायिक का उत्कृष्ट मायु तौ ऊपर कहि ही आए हैं और जघन्यमैं विशेष यता जो बहुत ही अल्प आयु कर्म षटकाय का होय तो एक श्वास के अठारहवें भाग होय। एक अन्तर्मुहत मैं उत्कृष्ट भव धरै तौ छ चासठि हजार तीन सौ छत्तीस बार जन्मे और रते ही बार मरै है। सो हो विधिवार कहिए है। तहां पृथ्वीकायिक, अपकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक और वनस्पति के भेद प्रत्येक साधारण करि दोय हैं। सो एक शरीर का एक जीव स्वामी होय सो तो प्रत्येक वनस्पति है। जहां एक शरीर के अनन्त जीव स्वामी होय सो साधारण वनस्पति है। तहां प्रत्येक वनस्पति का राक शरीर नाश भये एक जीव का ही घात होय । साधारण वनस्पति का एक शरीर घात होते अनन्त जीवन का घात होय है। तातें धर्मात्मा जीवनकं साधारण वनस्पति का विशेष यतन करना योग्य है। ऐसे साधारण प्रत्येक वनस्पति तिनमैं तें प्रत्येक वनस्पति लीजें । ऐसे पञ्च स्थावर के सूक्ष्म बादर करि दश भेद हैं। एक प्रत्येक वनस्पति रा सर्व ग्यारह भेद एकेन्द्रिय के भये। तिनमैं जुदे-जुदै छ हजार बारह छ हजार बारह जन्म-मरण करें तौ ग्यारह स्थान के मिलि छयाठि हजार एक सौ बत्तीस जन्म-मरण भये सो तो एकेन्द्रिय के जानना। वैन्द्रिय के अस्सो, तेन्द्रिय के साठ, चौन्द्रिय के चालीस, पंचेन्द्रिय के चौबीस तिनमैं आठ भव सैनी आठ भव असैनी के २०३
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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