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________________ २०२ को नाली के आकार है। इति आकार। आगे पंचेन्द्रियन का विषय केता-केता है । सो बताइए है। तहां संझी पंचेन्द्रिय स्पर्शन, रसना, प्राण-इन तीन इन्द्रियन तै उत्कृष्ट नव-नव योजन की जानैं और नेत्र इन्द्रिय उत्कृष्ट सैतालीस हजार दोय सौ तिरेसठ योजन जाने हैं और श्रोत्र इन्द्रिय उत्कृष्ट बारह सौ पाठ योजन की जाने । इति सेनी। आगे असैनी विष-तहाँ असैनी पंचेन्द्रिय स्पर्शन इन्द्रिय तें उत्कृष्ट चौसठि सौ धनुष की जाने और रसना इन्द्रियतै उत्कृष्ट पांच सौ बारह धनुष को जानें। नासिका इन्द्रिय तें च्यारि सौ धनुष की जान और चक्षु इन्द्रिय तें गुणठि (उनसठि) योजन की जाने और श्रोत्र इन्द्रिय ते आठ हजार धनुष की जानैं। इति असैनी । प्रागे चौन्द्रिय का विषय-तहां चौन्द्रिय स्पर्शन इन्द्रिय तें बत्तीस सौ धनुष को जान और रसना इन्द्रियतें दोयसौ छप्पन धनुष की जानें। घ्राण इन्द्रिय ते दोय सौ धनुष की जाने और चक्षु इन्द्रियतें गुगतीस सौ चौवन योजन जानें। इति चौन्द्रिय । आगे तेन्द्रिय का विषय तहों तेन्द्रिय, स्पर्शन इन्द्रिय तें सोलह सौ धनुष की जान । रसना इन्द्रियतें एक सौ अठाईस धनुष की जान है। प्राण इन्द्रिय ते सौ धनुष की जानैं है। इति तेन्द्रिय । आगे वेन्द्रिय का विषय-और वेन्द्रिय स्पर्श ते पाठ सौ धनुष की जानैं और रसना इन्द्रिय तैं चौंसठि धनुष की जानैं। इति वैन्द्रिय । आगे एकेन्द्रिय का विषय-तहां एकेन्द्रिय स्पर्शन इन्द्रिय तँ च्यारि सौ धनुष की जाने । इति राकेन्द्रिय विषय। पंचेन्द्रिय का विषय कह्या। आगे एकेन्द्रिय के भेदन मैं निगोदि। सो निगोदि पञ्चस्थान हैं, ताको भोरे जीव पञ्च गोलक कहैं हैं। सो कहिए हैं। उक्त च सिद्धान्त गोम्मटसार गाथा-अंदीवं भरहो, कोसल सादतग्घराई वा । खंघरअवासा, पुलवि सरीराणि दिट्टन्ता ॥ ३९ ॥ अर्थ-जैसे जम्बद्वीप, तामै भरतक्षेत्र, भरतमैं कौशल देश देशमैं साकेत नगर, नगर में घर । तैसे ही निगोद के पश्चगोलक हैं। स्कन्ध, अण्डर, जावास, पुलवी और शरीर-ए पश्च गोलक हैं। इनका सामान्य स्वरूप कहिर है। तहां एक सूजी की अणी ( नोंक) साधारण वनस्पति के जैते स्कन्ध आवै। तेते स्कन्ध कूले केवलज्ञानी सर्वज्ञ क पूछिए। भो प्रभो! इन विर्षे जीव संध्या कहौ। तब ज्ञानी कहैं । इस सूजी के ऊपर निगोद हैं। तामैं असंख्यात लोग प्रमाण स्कन्ध हैं। तिस एक-एक स्कन्ध में असंख्यात-असंख्यात लोक प्रमाण अण्डर हैं। एक-एक अण्डरमैं असंख्यात-असंख्यात लोक प्रमाण आवास हैं। एक-एक आवास में असंख्यात २.२ HOM
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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