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________________ | कथा, धन कथा, भोजन कथा, राज कथा, चोर कथा, बैर कथा, पर पाखण्ड कथा, देश कथा, भाषा कथा, | गुणबन्ध कथा, देवी कथा, निष्ठर कथा, पर पैशुन्य कथा, कदप कथा, देश कालानुचित कया, भण्ड कथा, । मूर्ख कथा, आत्म-प्रशंसा कथा, पर परिवाद कया, पर जुगुप्ता कथा, पर पोड़ा कथा, कलह कथा, परिग्रह कथा, | कृष्यारम्भ कथा, सङ्गीत कथा-ए पच्चीस हैं। इनका अर्थ-जहां धारि पुरुष परस्पर बतलावना ताका नाम कथा है । सो शुभकारी वचन बतलावना, सो तो शुभ कया है। हम बिना प्रयोजन बतलाग राप बन्धकरि.काल गमावना, सो विकथा है। ताके यह पच्चीस भेद हैं। सो जहाँ परस्पर स्त्रीन के स्वरूप की, चाल की, यौवन की-इन आदिक स्त्रीन को परस्पर कथा करि, काल गमाय, पाप का बन्ध करि परमव बिगाड़े, सो स्त्री विकथा है। जहां परस्पर धन की वार्ता करना, जो धनवान धन्य हैं। धन बिना जीवन कहाँ है ? धनवान की। सब सेवा करें हैं। जगत् मैं धन हो बड़ा है। ये धन कैसे पैदा करिए ? पारस ते धन होय, रसायन तेधन होय, चिन्तामणि मिले भला धन होय है। गिरा पावै, गल्या पावै, कोऊ देवादि मिलै तौ धन जांचें। फलाने राजा के धन बहुत है। केई कहैं उस सेड के बड़ा धन है । इत्यादिक परस्पर धन की कथा करना. सो धन विकथा है। जहां परस्पर भोजन की बात करना । जो कोई कहै यह भोजन भला है वह भोजन मला है, वह व्यञ्जन मला है, वह मोजन भला बनावै है, इत्यादिक भोजन की कथा है। जहां राजान मैं काहू को बड़ाई, काहू को निन्दा। राजान के न्याय-अन्याय की बात तथा फौज की दीर्घता को तथा लघुता को कथा। ऐसे कोई राजा की निन्दा, कोई को स्तुति करि, परस्पर काल खोय बात करना, सो राज विकथा है। जहां अनेक चोरन की चतुराई की कथा। कोई चोर के पुरुषार्थ की कथा। चोरन क ऐसो दण्ड देना। वे चोर जोरावर हैं। इत्यादिक परस्पर चोरन की बात करना, सो चोर कथा है और जहां कोऊ कहै। मेरे-वाकै बैर भाव है। केई कहैं वाके-वाके द्वेष है। याके केई वैरी हैं। कोऊ कहै. हम वाकै क्या सारे हैं ? इत्यादिक परस्पर कथा करनो, सो वैर कथा | है और जहां पराया छिपा दोष प्रगट करना। वह कहै तुं महापाखण्डो है। कोई कहै तेरे दोष मैं सब जानू हूँ वह कहै, तोसे दुराचारी संसार मैं नाहीं। इत्यादिक परस्पर बात करना सो पर-पाखण्ड विकथा है। जहां | देशन की निन्दा-स्तुति करनी। कोई कहै यह देश मला है, वह देश भला नाहीं। उस देश में शोत-गर्मो बहुत वा
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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