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________________ श्री ड टि १९२ संक्षेप विधान कहिए हैं। सो जिन-बिम्ब करनेकौं प्रथम तो पाषाण कूं खानि देखे, सो उत्तम रतन समान पाषाण की खानि देखें। गले दिन मानि-शोधन-क्रिया करें। पीछे तहाँ अनेक वादित्र सहित शिल्प शास्त्र का वेता शिल्पी सो अपना तन शुद्ध करि, उज्ज्वल वस्त्र धारि, उस खानि को शास्त्रोक्त पूजा करे। पीछे पाषाण काटै, सो शुद्ध पाषाण होय तो लावें । रेखा जो जनेऊ तामैं नहीं होय, बोधा नाहीं होय, गल्या नाहीं होय, ऐसे अनेक दोष सौं रहित शुद्ध पाषाण लावै। पीछे एकान्त स्थान पै प्रतिबिम्ब का निर्मापस करै । तहाँ शिल्पी अरु करावनहारा धर्मो श्रावक दोऊ शील सहित रहें। जेते काल काम करें तेते काल प्रमाद रहित शिल्पी रहै । प्रमाद भये विनय करि उठ खड़ा रहै, काम नहीं करें। ऐसे जेते दिन प्रतिबिम्बन का निर्माण करे तेते ब्रह्मचर्य सहित रहै। दीन-दुखीनकूं सदैव दान भया करै। शिल्पी एक बार भोजन करै, सो भी अल्प करें। तन मैं विकार नहीं होय । इत्यादिक अनेक शुद्धता सहित जिन-बिम्ब कराय धन लगाये। सो धन सफल है |५| पोछे जिन-बिम्बन की प्रतिष्ठा करावै। तहां देश-देश के धर्मो श्रावक विनयतें पत्रन न्योते देयकें बुलावें, पीछे सर्व की आये में शुश्रूषा करै वांच्छित दान दुखित भुखितकूं अन्न, वस्त्र दे और याचिकनिकं प्रभावना के हेतु वांच्छित पट आभूषण घोटिक दान देव इत्यादिक उत्सवन मैं धन खर्चे । सो धन सफल है । ६ । सिद्ध क्षेत्रादिक की यात्रा के निर्मित अनेक साधन आप जैसे धर्मात्मा जीवनक संघले यात्रा करें, सो मन्द गमन करें। जामें मुनि श्रावक व्रतोन का निर्वाह होय, ऐसे तो चलें। राह मैं, वन मैं, नगर मैं, तहां जे-जे जिन-मन्दिर खावें, तहां-वहां सर्व जगह भगवान की पूजा उत्सव करते चलें । दीन-दुख तन को दान देता, संघ की समाधानी करता, निराकुलभाव सहित यात्रा करि धन खर्चे । सो धन सफल है । ७ ऐसे मुनि-दान, शास्त्र लिखवाना, जिन-पूजा, जिन-बिम्ब करावना, जिन-मन्दिर करावना. जिन-प्रतिष्ठा करावना, सिद्धक्षेत्र - यात्रा, इन सप्त क्षेत्रनमैं धन लागे। सी धनको आभूषण है | २२| कर्म अपेक्षा पुत्र मण्डन जाकौं कहिए, गुरुजन जो माता-पितादिक बड़े होंय तिनकूं सुखदायक होय और यथायोग्य सर्व के विनय-साधन मैं प्रवीण होय। माता-पितादिकनिक वह आप हो सपूत कहाय, अपने गुणनतें मातापितानिको साता उपजावै। लोकन मैं अपनी सज्जनता, विनय-गुण, उदारतादि गुण प्रगट करि, सर्व सपूत १९२ . रं गि पी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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