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________________ विषय सुख स्पर्श विर्षे है सो सो जगत जीव तो तन सुं स्पर्श तब जानै सुखी होय। और सिद्ध हैं सो तोनिकाल सम्बन्धी तीनिलोकके स्पर्शनके अष्ट विषय सर्वक एककाल जानि आगे सुखकों भोगे हैं ऐसे भी माई सिनिमें जगत दुःखतो एक भी नांहों अरु वे इन्द्रिय सुखते अनंत गुणो अतीन्द्रिय सुख भोगिर्व हैं। ऐसे अविनाशी | निराकुल सुख सिद्धनिमें हैं सो जानना । ऐसें शुद्धदेव गुरु धर्मके श्रद्धानि सम्यकदृष्टि जीवनके ज्ञानसागरमें शुद्धोपयोगको सो निराकुल धाराकुं लिये शुभ फलकी उपजावनहारी तरंगन विर्षे अनेक हेय उपादेय रूप तत्त्वज्ञान | मई तरङ्ग उपजै तिनका कथन इस ग्रन्थ विर्षे किया है ताही तें इस ग्रन्थका नाम सुदृष्टितरङ्गिणी कह्या है सोई लिखिये है। गाथा-साम मुविष्ट तरंगो, गन्यो गेयाय हेय पादेयो। दो भेय गेय गेयं, तिरकापम मेय मुगेय आदेई ॥ २॥ अर्थ-इस ग्रन्धका नाम सुदृष्टितरङ्गिणी है ताविर्षे झेय हेय उपादेयका कथन है सो ज्ञेय तो एक है ताविर्षे | दो भेद करिये है सो एक ज्ञेय तो तजनेयोग्य है अरु एक ज्ञेय उपादेय है। स्वज्ञेय तो उपादेय है अरु परज्ञेय । तज्ने गोन्ध है। माग....माष्टिीयनिक स्वपर पदार्थका जानपना होय है। सी ज्ञेय हेय उपादेय करि सहज हो तीनि प्रकार होय है। सो तहां प्रथम तो ज्ञानके जानने में आवे सो सर्व स्वपरपदार्थ ज्ञेय है। पीछे ताही शेयके दोय भेद होय हैं। कोई पदार्थ अपने हित योग्य नाही सो हेय है, केतेक पदार्थ अपने हित योग्य होई सो उपादेय हैं। ऐसे शेयविष हेय उपादेय करना है सो सम्यकभाव हैं और मिध्यादृष्टि बालबुद्धिनिके त्याग उपादेय नाही होय है। कदाचित होय हो तो विपरीत होय भली वस्तुका त्याग करें अयोग्य वस्तुको अङ्गीकार करें। ऐसे त्याग उपादेय ते पर भव बिगड़ि जाय. तातै सांचे हेय उपादेय वि सम्यग्दृष्टिनिका उपयोग प्रवेश करि सकै | सो ही कहिये हैं। तहां समुच्चय जीव अजीव ज्ञेयका जानना सो तो ज्ञेय है। ताविौं अजीव अचेतन जड़ ज्ञेय सो तो परज्ञेय हेय है और जीववस्तु देखने जानने मई चैतन्य ज्ञेय सो उपादेय है। सो चेतन ज्ञेय भी दोय भेदरूप है। परसत्ता परप्रदेश परगुरण परपर्याय रूप आत्मा सो परज्ञेय है। सो यह पर आत्मा परज्ञेय है सो हेय है ताजने योग्य है और आपमई स्वप्रदेश स्वगुरा स्वसत्ता स्वपर्याय एकतारूप सो स्वज्ञेय है उपादेय है अङ्गीकार करने योग्य । है। भावार्थ-चेतन अचेतन करि ज्ञेय दोय भेद स्वरूप है। सो धर्मद्रय अधर्मद्रव्य काल आकाश पुद्गल ये
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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