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________________ fr 'कोई इन्द्रिय सुखका लोभी प्रश्नकर जो तुमने कर्म रहित सिद्धपद चाहा सो वहां खावना पीवना, स्त्रीको भोगना, नाना प्रकार सुगन्ध, आभूषण, वस्त्र, रागरंग, नृत्यादिक भोग सुख तो हैं ही नाही तो मोत विषै और कहा सुख है। ताको कहिये हे विषयाभिलाषी ! तोहि सुखकी अभिलाषा है सो हे भाई तू संसार विषै कहा ( क्या ) तो दुःख जाने है और कहा सुख मानें है। सो प्रथम तू कहिले, तब हम तोकौं सिद्धनिका सुख कहेंगे। तब तरकोने | कही संसारमें बड़ा दुःख तो जन्म मरणका है। तब धर्मोने कही र दुःख सिद्धनिमें नाहीं । तब तरकीने काही एक दुःख निरन्तर भूखा है वही कि यह सिद्धनिमें नाहीं । फेरि तस्कीने कही, शोत उष्ण रागद्वेष क्रोधमान माया लोभ र दुःख हैं और नाना प्रकार वायु पित्त कफ खांसी कुष्टादि रोगनिका दुःख है। तथा कमावना देशान्तर फिरना इत्यादिक अनेक तो संसारमें दुःख हैं । तब धर्मेने कही भी भ्रात! सो संसारके दुःख सिद्धनिमें एक भी नहीं और तू सुख इन्द्रिय जनित मार्ने सी देखि, जब षट्स जिह्वार्ते एकमेक होई तब जिह्वाके द्वारा | रसका जानपना होईं तब षट्रसका सुख होई । अरु रसनाते अंतर रहै तब सुख नाहीं । और सिद्ध हैं सो अनंत पुद्गल परमाणु जा रसप मई जैसे-जैसे रसनके अंश धरौं, तिन तोनकाल सम्बन्धी परमाणुओंके रसके स्वादुको एक समय जानि भोगवें है। और तू नृत्यादिकका सुख माने है सो तेरी दृष्टि विषै जावें तब सुख होय अरु दृष्टिमें नहीं जावै तो सुख नांही होय। और सिद्धनिके ज्ञान में जहां-जहां देव मनुष्यनिर्मे अनंतकालके होय गये, होंयगे होंय हैं जे-जे ती निकाल सम्बन्धी नृत्य, सो सर्व केवल ज्ञान तें दोखें हैं। और तिनके सुखको भोगवें हैं । संसारमें तू राग रंगका सुख माने है सो रागका सुख तब हो है जब अपने श्रोत्रनिके सुनिवे विषै आ है तब आप सुखी होय है और अपने सुननेमें नहीं आवे तो सुखनहीं होय। और सिद्ध हैं सो अनंतकाल पहिले जे-जे रागरंग भये ते सब जाने हैं अरु अवतार तीनि लोक विषै राग होय तिनके जानें हैं। और आगामी तीन लोक विषै राग होंगे तिनि सर्व कौ पहिले ही जानें हैं। ऐसे तौनिलोक विषै तीनिकाल सम्बन्धी पुद्गल स्कन्ध मिष्ट स्वरूप होय परनमैं तिनिसर्वकूं एक समय जानि सुख भोग हैं। अरु सुगन्धका सुख संसारी जीवनिक तब होय है जब नासिकाके जानपने विष आवहै और सिद्ध हैं सो तौनिकाल तीनिलोककी पुद्गल परमाणु जे-जे सुगन्धरूप भई तिन सबके सुखकूं एककाल जानि सुख भोग हैं। और स्पर्शन इन्द्रियका श्री सु ११ 1 ११ त रं गि णी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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