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________________ N । उत्पत्ति होय भार अशुभ स्त्री की कूत्र तैं अशुभ जीव अवतार लेय है। जैसे—पृथ्वी वि दोय खान निकसै, सो एक खान मैं तौ उतम रतनादिक निकसे हैं। कोऊ शान मैं लोहा निपजे है। तसे ही स्त्रीन की शुभ-अशुभ फूख जानना। सो तिन शुभ-अशुभ सन्तान होवे के कारण बताइर हैगाथा-पुत्रवती जुगवासर, सेवत सन्ताण होय धिण सीलो । विसगाणी अपलायो, धम्म रहीयो अनि विगवारो ॥३६॥ अर्थ-तही पुष्पवती स्त्री धर्म सहित नारी होय, ताकौ कोई कु-बुद्धि पुरुष पहले दिन तथा दूसरे दिन, तातें संगम करें। अरु ताकौं सन्तान उपजै तो वह शील रहित, पर-स्त्री वेश्यादिकवि महाकाम लम्पटी होय, सप्तव्यसनी होय, अपलक्षशी होय, धरहित होय, अज्ञानी होय, अनाचारी होय । भावार्थ जो स्त्री स्त्री-धर्म-ऋतुवती होय ताके करबे योग्य क्रिया कहिए है। जो खोटी स्त्री हैं ते तौ स्त्री-धर्म भरा सर्व पुरुष स्त्री बालकनकों होते हैं। घर का सकल धन्धा काम करे हैं। घर के घटपटादि सर्व छीव हैं। तन अङ्गार करें हैं। ताम्बल साय, गरिष्ट पेट भर भोजन करें; गीत नृत्यादि रति क्रिया कर। हाँसिकौनकादिक कीड़ा करें। अपना तन, मन्य जीवन के तन” स्पर्श करावैं। इत्यादिक क्रिया कही, सो र अनाचार रूप किया हैं। सो इस रूप रहने से खोटी स्त्री जानना। हे भव्य ! यह अतुवती-स्त्री, अस्पर्श शद्र समान है। छोवे योग्य नाहीं। याके खान-पान का बासन अस्पर्श शद्र के बासन समान है। तातें जो स्त्री, स्त्री-धर्म क्रिया में शिथिल है। सो महाअशुभ, पाप क्रिया कर्मक उपजाय प्रमाद योग ते अपना पाया मनुष्य भव बिगाडि परभवकं दुख करें है। तातें ऊपर कही जो स्त्री-धर्म भरा पीछे अशम निया सो नहीं करना योग्य है, खोटी स्त्री ऐसी क्रिया करे हैं। अब शुभ स्त्रीन की क्रिया कहिए है, सो जे शीलवान स्त्री हैं ते ऋतुवन्ती भये पीछे अपने मलिन वस्त्र उतारके अप्रच्छन धोवे कोई देखे नाहीं। आप मान कर के उज्ज्वल और वस्त्र पहिरकै एकान्त स्थान में तिमा-घास-डाम का बिछौना बिछाय तिष्ठे। अपना मुख काहु को नहीं दिखावै। नहीं काहू का मुस्ख आप देखें। भोजन करें सो रस रहित-नीरस भोजन करें। सो हु उदर भर नहीं खाय दिन मैं निद्रा नहीं करें और तन श्रृङ्गार नहीं करें। तांबलादिक नहीं १७ | खांय गीत-नृत्य हाँ सि-कौतुक आदि नाहीं करें । सुगन्धादिक तन लेपन नाहीं करें । अजन सुरमादि नेत्रन में अञ्जन नहीं करें। हाथ-पांव के नख नाहीं सुधारें। अपना अङ्गछिपाय तीन दिन अप्रच्छन्न रहैं। सौ राम्रि में कातुवन्ती
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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