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________________ समूह होय, सो बाग कहिये। याका नाम संग्रह -नय है तथा बहुत मनुष्य के समूहको यात्रा कहिये तथा हाट कहिये तथा गुदरी कहिये तथा बारात कहिये। ए सर्व यथायोग्य कारण पाय संग्रह नय के शब्द हैं । २ । जातें लौकिक सधैं, सो व्यवहार नय है। जैसे- हुण्डी विषै लाख रुपये सौ योजन दूर क्षेत्र वै दिशावर, तहां कूं लिख दिए । वह सा कागज का दिया । सो वाने परतीत करो, रुपये दिए, हुण्डी लाई । पीछे दूसरी दिसावर ये हुण्डी के लाखों रुपये पावना, सो व्यवहार नय है तथा ऐसा कहना जो यह हमारा पुत्र है. ए पिता है, ए माता है, ए स्त्री है, ए अरि (शः ) है रा मित्र है इत्यादिक ए सर्व वचन व्यवहार-नय करि प्रमाण हैं। निश्चय नय करि आत्मा काहू का पिता पुत्र नाहीं । संसार भ्रमण करते ऐसे अनन्ते नाते भरा | परन्तु लौकिक-नय करि सत्य भी हैं। तातें यह व्यवहार नय है । ३ । और " तक्काले तम्मं ये परगती" याका अर्थजिस काल में द्रव्यं जैसा है, तैसा ही कहिए। जैसे- कोई कच्चा आम है ताक तब खट्टा हो कहिए। तिस ही टि कपाल मैं दे पाय लाल-पीत करिए तब हो उस आमको मिष्ट कहिए । जब कच्चा था, तब खट्टा 'था अरु अब पका, तब मिष्ट ही है तथा कोई पुरुष काहू तैं युद्ध करें है तब ताकूं क्रोधो कहिए। जिस समय वही जीव पूजा -दान करता होय तब धर्मो कहिए। जिस समय जैसा होय तैसा हो कहिए, सो ऋजुसूत्र नय है । ४ । और शुद्ध शब्द का मानना, सो शब्द- नय है। जैसे काहू ने कही राजा । तब शब्द-नय बारा कहै। राजा कहना अशुद्ध शब्द है । तातें ऐसा कहौ नरेन्द्र यह शुद्ध शब्द है । इत्यादिक शब्द के शुद्ध अशुद्ध भाव की अपेक्षा बोलिये, सो शब्द - नय है 1५। जिस वस्तु मैं गुण तो और अरु नाम और सो समभिरूद्-नय है। जैसे-चलतोकं गाड़ी कहिए तथा गाड़ी कं उखली कहिए तथा बलहीनकौं जौरावर नाम कहना तथा धन हीन को लक्ष्मीधर कहिए। ए सर्व वचन समभिरू नय हैं सत्य हैं । ६ । जा वस्तुकों जैसी की तैसी ही कहिए। जैसे— काहूक राज करते राजा कहिए. सो एवं भूत-नय है। ७१ और वस्तु का कबहूं अभाव नाहीं । जैसे—- जीव का कबहूं अभाव नाहीं। ऐसा कहना द्रव्यार्थिक नथ है। जैसे—कहिए जीव चेतना रूप अविनाशी है, अजर है, अमर है, शुद्ध है, अमूर्तिक है इत्यादिक कहिए सो निश्चय (द्रव्यार्थिक) नय है तथा ऐसे कहिये जो एक ही जीव व्यारि गति में भ्रमण करे है, यह निश्चय नय है । ऐसा कहिये जो यह देव जीव, ये मनुष्य जीव, ये पशु जीव, सू १७१ १७१ व रं गि गी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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