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ताके काल का प्रमाण बताईरा है। कौन-कौन प्रपाद कार्य भये कायोत्सर्ग करें, सो स्थान बताइये है
श्लोक -प्रन्धारम्भे समाप्ते घ, स्वाध्यायेस्तवनादिपु । समविशतिरुच्वास, कायोत्सर्गा मसा इह ॥xu ___ अर्थ-मुनीधर इतनी जगह कायोत्सर्ग करें। एक तौ कोई नूतन ग्रन्थ जोड़ने का प्रारम्भ करें, तब प्रथम कायोत्सर्ग करें। जब शास्त्र की पूर्णता हो चुके, तब कायोत्सर्ग करें। शास्त्र का स्वाध्याय करें, तब कायोत्सर्ग करें, महन्त सिद्धजी के गुणों का स्तवन करें, तब कायोत्सर्ग करें। इन जगह योगीश्वर | कायोत्सर्ग करें। ताके काल का प्रमाण सत्ताईस श्वासोच्छास है। भावार्थ-इतनी जगह धर्म क्रियान मैं प्रमाद वशाय अतीचार लागा होय, तौ ताके मेटवेकौं यति कायोत्सर्ग करें, सो एक-एक कायोत्सर्ग का काल सत्ताईस-सत्ताईस श्वासोच्छास है।
श्लोक---अष्टाविंशति मूलेषु, दिनस्य मल शुद्धये। अष्टाप्रशस्त मुच्छवासाः, निशायामपि तद्दलम् ॥ ६॥
अर्थ-यतीश्वर अपने अठाईस मूलगुशनकों तथा और व्रतकों, कोई प्रमादवाय जातीचार लागा जाने, तौ ताके शुद्ध करवेकौं कायोत्सर्ग करें । सो च्यारि प्रहर दिन मैं कोई अतीचार लागा होय, तौ ताकी यादि | करि ताके मेटवेकौं कायोत्सर्ग करें। ताका काल एकसौ आठ श्वासोच्छवास है। कोई च्यारि प्रहर रात्रिमैं | दोष लागा होय, तो ताके मेटवेकौ चौवन श्वासोच्छवास काल ताई कायोत्सर्ग करें।
श्लोक-पाक्षिके त्रिशतं जेयं, चतुर्मास समुद्भवे । चतुः शतं शतं पंच, सांवत्सरे यभागमम् ॥ ७ ॥ अर्थ-और जहाँ यतीश्वर अपने व्रत मैं पन्द्रह दिन विर्षे प्रतीचार लामा जाने । तौ ताके मैटवेकौं तीनसौ श्वासोच्छ्वास काल ताई कायोत्सर्ग करें और च्यारि महीना मैं अपने संयम • दोष लागा यादि आवें तौ ताके दुर करवेकौं च्यारि सौ श्वासोच्छवास काल तोई कायोत्सर्ग करें। आपकौं वर्ष दिन मैं कोई दोष ।। लागा यादि होय, तिसके मेटवेकौ पाँचसौ श्वासोच्छवास काल ताई कायोत्सर्ग करें।
लोक-पंचविंशति रुच्छ्वासा गोचरे जिन वन्दना । गते मले निषद्यायां, पुरीषाधि विसर्जने ॥८॥ अर्थ-जो यतीश्वर गोचरी जो नगर मैं भोजनकी जायकै आवै, तब राह मैं प्रमादयश दोष लागा होय तौ ।। ताके दूर करखेकौं पच्चीस श्वासोच्छवास काल ताई कायोत्सर्ग करें। कहीं जिन वन्दनाकौं गये होय, तौ राह मैं