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________________ MH४२ मैलि पुञ्ज जमिचल्या। सो बाह्य मैलि करि शरीरनै वास चलने लगी है। तो भी नासिका इन्द्रिय का वशीभत करनेहारा ग्लानिचित्त नाहीं करै। ताको मल परिषह विजय कहिए।१७। यहां मल के दोय भेद हैं। एक द्रव्यमल एक भाव-मल । तहाँ द्रव्य-मल के भेद दोय हैं। एक बाह्य-द्रव्य-मल । एक अन्तरङ्ग-द्रव्य-मल । सो कोच, कांदो पसेवतै रज का जमना रा तो बाह्य-द्रव्य-रल है। ज्ञानावर सादिक द्रव्य कर्म का बात्माक लेप सो अन्तरङ्ग-द्रव्य-मल है और राग-द्वेष भाव पाप परिणति र भाव मल है । ऐसे कहे जो मल तिनमैं भाव-मल का त्यागी, अन्तरङ्ग पवित्र है जात्मा तिनकी, सो अति महानिर्मल है और द्रव्य-मलतें समभावो यति सो मल परीषह विजयी साधु कहिए।१८। राज अवस्था मैं आप चक्री थे तथा कामदेव तथा विद्याधर मण्डलेश्वर महामण्डलेश्वर इन आदि बड़े वंश के राजा थे, सो मान के अर्थ अनेक युद्ध करते। अनादर भए दण्ड देते अपना बमल (हुक्म) सर्व पर चलावते। सो ही अब संसार दशा चश्चल जानि, राजमार तजि नगन होय, वनवासी भए। सो जब वैराग्य के बल करि कषाय जोती, सो ऐसे जगत्गुरु वीतरागी को कोई मन्दभागी अज्ञानी आव-बादर नहीं करें नमस्कार वन्दना नहीं करें ताजोम नहीं करें तौ वीतरागी सर्व का बन्धु काहू तें रोष भाव नहीं करे सो सत्कार पुरस्कार परीषह विजयो साधु कहिए । २६ । जे जगत् गुरु नाना प्रकार तप भण्डार अनेक चारित्र गुण के धारी वीतरागीकों, कोई ज्ञानावरसी-कर्म के क्षयोपशमत तथा उदयतें ज्ञान की बढ़वारी नहीं होय तो यतिनाथ और मुनीश्वरकों अनेक शास्त्रन के पाठी विशेष ज्ञानी देखि ऐसे नहीं विद्याएँ । जो मैं बड़ा तपसी बड़ी उम्र काहूं भले पद का धारी, सो मेरी विशेष बुद्धि नाही मोकौं कोई कहा कहेगा? ऐसा विचार नहीं करै, सो प्रज्ञा परोषह विजयी साधु कहिय । २० । यतिकौं तपस्या करते. चारित्र पालते, बहुत दिन भरा होय, अरु कर्म योग" कोई अवधि मनःपर्यय केवलज्ञान नहीं भया होय तो योगीश्वर अपना चित्त धर्मत तथा चारित्र त अरुचिभाव नहीं करें हैं। सो साधु अज्ञान परीषह विजयी कहिए । २३ । मुनिकौं तप करते चारित्र पालते बहुत दिन होय अरु तप बलते कोई ऋद्धि नहीं उपजी होय तथा कोई निमित्त ज्ञानादिक अतिशय नहीं देखा होय, तो ऐसा नहीं विचारे जो आगे शास्त्र मैं ऐसी सुनी थी जो तप के बलते अनेक ऋद्धि होय हैं। सो हमको कछु प्रगट नहीं भयो। सो न जाने शास्त्र भाषित सत्य है तथा असत्य है। ऐसा सन्देह रूप मिथ्यामयी विकल्प नहीं
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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