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________________ कोऊ देवादिका के क्रीड़ा का स्थान न हय और काऊ स्थान में कार का ममत्व भाव होय ऐसे स्थानन मैं यति । नहीं रहे ऐसे अनेक विचार सहित निर्दोष स्थान तामैं काहू का ममत्व नाहीं ऐसे स्थान में स्थिति करि तिष्ठं || बरु तिष्ठं पाछे कोई देव विद्याधर सिंहादिक दुष्ट जीव उपद्रव करि स्थान” यति कौं चलाया चाहें तो यति महाधीरज का धारी शर-वीर साहसी समता रस का स्वादी सकल परोषह सहै परन्तु आसन नहीं तजै सो जगत् गुरु आसन परीषह विजयी कहिये।३०। और मुनिनाथ निशि दिन ध्यान अध्ययन में बिता प्रमादवशी नहीं होय । कदाचित् प्रमाद वसाय निद्रा-कर्म का उदय होय हो तो पिछली रैनि (रात्रि) तुच्छ निद्रा करि प्रमाद खो। सो भी सोवै तो महाविकटासन सोवें। तिन प्रासन के नाम बताइये हैं। गौदहन आसन, वीरासन, धनुष्कासन, वज्रासन, मडासन इन आदि अनेक आसन हैं। अब इनका अर्थ कहिये है। तहां जैसे—गया के । दुहनको ग्वाल बैठे। ऐसे प्रमाद खोवनेकू तिष्ठं सो गो-दहन आसन है और तहां जैसे-लौकिक मैं भोरे जीवन नैं हनुमान का स्थापन किया है, सो वीरासन है। जैसे-शर-वीर लड़वेकं ठाडो होय यति प्रमाद शत्रते लड़वेक वीरासन करै तथा जैसे लौकिक मैं धनुष बांका होय है तैसे यतीश्वर तनकू बांका भमि मैं डारि शयन करं, सो घनुष्कासन है और जैसे बज्र दण्ड भूमि डारिये तब सरल सूदा पड़ा रहै। तैसे यति सरल तन करि अंगोपांग सोवं, सो बज्रासन है तथा जैसे मसान भूमिमैं डरचा मर्दा का तन चेतना रहित अडोल पड़ा होय । तैसे यति मसान भम्यादिमैं सर्व श्वासोच्छास मैंटि शरीरक काम गुप्ति के योगत लम्बा कर तिष्ठे, सो मडासन है। इन आदि क्रियादि करि प्रमाद को खोय ध्यान अध्ययन में स्थिर रहै, सो शयनासन परीषह विजयी कहिये।। और जे दुष्ट नर योगीश्वर कौं देखि दुर्वचन कहैं हैं कोई कहे चोर है, कोई कह ठग है, कोऊ कहैं पाखण्डी है। कोऊ कहैं दीन है, को कहैं रंक है। कोऊ कहैं कमाऊ है और केई कहैं राज लक्षण नाहीं ताते राज तषि उदर भरवेकू मुनि मया है। इत्यादिक दुष्ट अज्ञानी जीव वचन रूपी बाणन करि मुनिकुं पीड़ा का निमित्त मिलाते हैं तो भी योगीश्वर समता रस का भर या भली मावना भावनेहारा वीतरागी कोई के वचन रूपो वाण । अपनी समता रूपी ढाल करि अपने लागने नहीं देय और परिणाम निर्दोष राखे, सो दुर्वचन परीषह विजयी साधु कहिए । १२ । और कोई पापीजन निर्दोष वीतराग मनिक मारे हैं। बांधैं हैं केई अग्नित जलावें हैं। इत्यादिक
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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