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________________ १०५ गुणस्थान में एकत्ववितर्कवीचार नामा शुसन्ध्यान है और तेरहवें में सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति नाम शुक्रध्यान है और । चौदहवें में व्युपरतिक्रिया निवति नाम शुक्लध्यान है। इति ध्यान। आगे गुणस्थान प्रति जासव कहिये हैं, पासव सन्ताक्न हैं तहां मिथ्यात्व में आहारकद्रिक योग बिना पचवन आसव हैं और साखादन में पंच मिथ्यात्व व पाहारकादिक बिना पचास पासव हैं। मिश्र में कषाय इकोस, योग दश, अव्रत बारह सर्व मिलि तियालीस आसव है। जागे चौधे में अव्रत बारह. कषाय इक्कीस, योग तेरह सर्व मिलि छयालीस जासब हैं। पंचम में कषाय महरा, योग नव, अव्रत ग्यारह र सर्व मिलि सैंतीस आसव हैं। प्रमत्त मैं कषाय तैरह, योग ग्यारह रा सर्व मिलि चौबीस आसव हैं। सातवें-आठवें में कषाय तैरह, योग नव मिलि करि बाईस आसव हैं। कषाय सात, योग नव मिलि पासब सोलह नवमें गुणस्थान में हैं। कषाय एक, योग मिलि दश आसव सूक्ष्म साम्पराय मैं हैं । ग्यारहवें-बारहवें में नव योग आसव है। तेरहवं में सात योग आसव हैं और चौदहवें में जासव नाहीं। इति भासव। आगे जाति गुणस्थानधै कहिए हैं। तहां जाति चौरासी लाख हैं, सो प्रथम गुणस्थान मैं तो सर्व जाति हैं। सासादन, मिश्र, असंयत इन तीन में देव, नरक, पंचेन्द्रिय, तिर्यंच, मनुष्य इनकी छब्बीस लाख जाति हैं। पांचवें में मनुष्य तिर्यच सम्बन्धी अठारह लाख जाति हैं। इति जाति। आगे गुणस्थान पै कुल लगाइये हैं। कुल एकसौ साढ़े सत्यागबै लाख कोहि कुल हैं। तहाँ मिथ्यात्व में सर्व कुल हैं। सासादन, मिश्र, असंयत इनमें एकेन्द्रिय बिकलेन्द्रिय सम्बन्धी घटाय एकसौ साढ़े छ लाख कोडि कुल हैं । पंचम गुणस्थान में पंचेन्द्रिय तिर्यच, मनुष्य सम्बन्धी साढ़े पचपन लाख कोडि कुल हैं। प्रमत्त तें लगाय चौदहवें गुणस्थान पर्यन्त मनुष्य सम्बन्धी बारह लाख कोडि कुल हैं। इति कुल। ऐसे सामान्य गुणस्थानन 4 चौबीस ठाखौं लगाया अब कहे जो रा जीव तिनमैं स्थावरन के पंच भेदन में वनस्पति है। सो वनस्पति जीवन की उत्पत्ति के कारण बीज सो सात प्रकार हैं। सो हो कहिर हैं गाथा-पाठय मूल पन्चो, कर खन्दोग वीय समुच्छो । यो सत्त पयारो, इक अखो बणप्फदी बीयो ॥१४॥ अर्थ-पल्लव, मूल, पर्व, कन्द, स्कन्ध, बोज, सम्मूचन-श सात भेद वनस्पति उपजने कू बीज समान है। जाकी कोंपल ऊपरित तोडि लगाय लोग, ऐसे हजारी गेंदा की बादि देय केतोक बमस्पति हैं जिनका पल्लव -
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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