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स्थान सजीव काय के होंय हैं। जागे योग मार्ग सा-तहाँ प्रथम गुणस्थान में आहारकद्विक बिना योग तैरह हैं और सासादन में भी रा ही तेरह योग हैं और मिश्र में मन के व्यारि, वचन के व्यारि, काय के दोध ऐसे दश योग हैं। असंयत चौथे में आहारकद्विक बिना तेरह योग हैं। पांचवें में नव, छठे में आहारकद्विक सहित ग्यारह योग हैं। सातवें ते लगाय बारहवें पर्यन्त नव योग हैं। तेरहवें में सात योग हैं। चौदहवें में योग नाहीं। आगे वेद - सो प्रथम लगाय नववें गुणस्थान के सवेद भाग पर्यन्त तीनों वेद हैं। आगे वेद नाहीं। आगे कषाय-श्री प्रथम दूसरे कोई पीस हैं। तीसरे चौथे में कषाय इक्कीस हैं। पांचवें में कषाय सत्तरह है। छठे अपूर्वकरण पर्यन्त तैरह कषाय हैं। नववें में सात हैं। दशवें में एक सूक्ष्म लोभ है। जागे कषाय नाहीं । बहुरि अब ज्ञान कहिए हैं। सो प्रथम-दूसरे में तौ तीन कुज्ञान हैं। तीसरे में मिश्र ज्ञान है और चौथे-पांचवें मैं तीन सुज्ञान हैं और प्रमत्त तैं लगाय बारहवें पर्यन्त ज्ञान व्यारि हैं। तेरहवें चौदहवें में एक केवलज्ञान है। आगे संयम कहिए हैं— सो मिध्यात्व तैं असंयत पर्यन्त तो असंयम है और पांचवें में देश संयम एक है। प्रमत्तअप्रमत्त इन दोऊन में सामाधिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि- - तीनि संयम हैं। आठवें नववे में सामाधिक, छेदोपस्थापना ए दोय संयम हैं और दशवें में सूक्ष्म साम्पराय संयम है और ऊपरे एक यथाख्यात ही संयम है। आगे दर्शन कहिए हैं— सो प्रथम तैं तीजे पर्यन्त तौ दोय दर्शन हैं। चौथे तैं लगाय बारहवें पर्यन्त तीन दर्शन हैं : तेरहवें चौदहवें में एक केवलदर्शन है। आगे लेश्या कहिए है— सो चौथे गुणस्थान पर्यन्त तौ षट् लैश्या हैं। पांचवें तें लगा सप्तम पर्यन्त तीन शुभलैश्या हैं। अष्टमतें लगाय तेरहवें गुणस्थान पर्यन्त एक शुक्कलैश्था है । चौदहवें में लेश्या नाहीं । आगे भव्य कहिय है वहां मोक्ष कबहुँ नहीं जाय, सो अभव्य हैं। मोक्ष जाने योग्य होय सोताको भव्य कहिए सो प्रथम गुणस्थान में तौ भव्य अभव्य दोय हैं और ऊपरले सर्व गुणस्थान भव्य को होय हैं। आगे सम्यत्तव कहिए है। सी मिथ्यात में मिथ्यात सम्यत्तत्र है। सासादन में सासादन सम्यतय है। मिश्र में मिश्र है और असंयततै लगाय अप्रमत्तलौ उपशम, क्षयोपशम और क्षायिक सम्यत्तत्व है। आठवें तें लगाय ग्यारहवें लूं उपशम और क्षायिक दोय सभ्यत्तव हैं। बारहवें तैं लैय सिद्धन पर्यन्त यक क्षाधिक सम्यक्त्व है। आगे संज्ञो कहें हैं। सो प्रथम गुणस्थान में सैनी असैनी दोऊ । दूसरे तैं लेब बारहवें ला सैनी
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