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________________ घटते-घटते लोक शिखर पैरक राज हैं। ऐसे पूर्व-पश्चिम दिशा में लोक प्रमाण प्रतर होय हैं। उत्तर-दाक्षण दिशा विष बारा अंगुल प्रदेश मोटे जानना। ऐसे उत्तराभिमुख स्थिति कपाट कह्या। आगे उत्तर दिशा को मुख करि कायोत्सर्ग आसन सहित केवलज्ञानी कपाटकरें, सो उत्तराभिमुख उपविष्ट कपाट कहिए। तहाँ आत्म प्रदेशन की लम्बाई तो किंचित् न्यून चौदह राजू है। उत्तराभिमुख स्थिति कपाट की मोटाई का प्रमाण बारह अंगुल है। ताते तिगुणे छत्तीस अंगुल मोटाई आत्म प्रदेश जानना । इति क्याट। आगे प्रतर का स्वरूप कहिये है। तहाँ तीन वातवलय बिना सर्व लोक विष आत्म प्रदेशन का फैलना सोए सर्व क्षेत्र प्रतर समदुधात है और वातवलय सहित सर्व लोक चौदह राण पुरुषाकार में सर्व जगह आत्म प्रदेश फैलें सो लोकपूर्ण समुद्धात है। तात ही एक जीव के प्रदेश लोक प्रमाण कहे हैं। सो ही तत्त्वार्थसूत्र" में कहिर है। फाँकी—“असंवैययाः प्रदेशाः धर्माधर्मेकजीवानाम् ।" याका अर्थ-जो धर्म-द्रव्य, अधर्म-द्रव्य और एक जीव इन तीनूं के प्रदेश असंख्याते हैं तथा लोक प्रमाण हैं। इति सामान्य समुद्घात स्वरूप । गैसें समुद्रातन का सामान्य स्वरूप कह्या! विशेष 'श्रीगोम्मटसारजी' से जानना। तहाँ तेरहवें गुरास्थान में केवल समुद्घात करें ताका विशेष का। सोया विधि केवल समुद्यात करि पीछे समुद्रात मैटि मूल शरीर में सर्व आत्म प्रदेश समाहिक तिष्ठे, सो तेरहवा सयोगकेयली गुणस्थान जानना। अन्तर्महुर्त पोछे अयोग-केवलो गुरास्थान होय। तहाँ मन-वचन-काय योग नाहीं। तातें अयोग चौदहमा गुणस्थान है। पीछे इहाँ लघु पंच अक्षर काल प्रमाण स्थिति करि निर्माण हो है। ऐसे सामान्य भाव बौदह गुरास्थान का स्वरूप कहा। इति गुरणस्थान। आगे जोव समास कहिए है। तहाँ एकेन्द्रिय सूक्ष्म बादर एकेन्द्रिय बेन्द्रिय (दोय इन्द्रिय) तेन्द्रिय चौ इन्द्रिय सैनी असैनी ऐसे सात भये। तिनके पर्याप्ति, अपर्याप्तिकरि चौदह भेद जीव समास है। इनहीं के विशेष मेद एक, दोय, तीन, च्यारि आदि एक-एक बढ़ती उगनीस (उनीस) भेद हो हैं। अड़तीस सन्तावन चारिसौषट भेद भी हैं सो आगे कहेंगे। सो भी इन चौदह हो में गर्मित हैं। इति जीव समास। आगे पर्याप्ति का स्वरूप कहिये है। तहाँ शरीरादि यथायोग्य १९।। इन्द्रियन का पुद्गलीक आकार होना सो पर्याप्त है। तहाँ औदारिक, वैक्रियिक, आहारक-इन तीन शरीर जाति की पुद्गल परमार को ग्रहण करि इन तीन शरीररूप परमाणु परिणमाय केतीक अस्थि चॉम नशा
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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