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________________ यहाँ केवल समुद्घात का निमित्त पाय समुद्रात का स्वरूप कहिये हैं। सो प्रथम ही नाम कहिए है वेदना, कषाय, वैक्रियिक, मारणान्तिक, तेजस, आहारक, केवल–ए सात तो समुद्घात हैं। एक भेद उत्पाद रोसे र आठ भेद हैं। अब इसका संक्षेप स्वरूप लिखिए है। तहाँ महावैदना के योगत आत्मा के प्रदेश शरीर के बाहिर निकसना, सो वेदना समुद्यात है। सो बात, पित्त, ताप, पेट, नेत्र, क्रिमि इत्यादिक अनेक रोग सहित, कोई जीव के तौहानगर एक देवा, केस दीमिरीन प्रदेश इत्यादिक अनेक जीवन सम्बन्धी एक-एक प्रदेश बधते असंख्यात प्रदेश वधते भेद वधैं हैं। सो उत्कृष्टपने मल शरीरतें नव गुरो भये और शरीर प्रमाण ऊँचे ऐसे आत्माको तीव्र वेदना होय तौ मारे वेदना के शरीरको छोड़ि प्रदेश बाहिर निकसैं हैं। सो इस वेदनासमुद्घातवाले वनस्पति जीव तीन अशुभलेश्या सहित अनन्त हैं। वायु, तेज, अप, पृथ्वी-इन च्यारि स्थावरन मैं तीन अशुभलेश्या सहित जीव असंख्याते हैं। इनका क्षेत्र तीन लोक है सो इसमैं ऐसा कोई प्रदेश क्षेत्र नहीं बच्या है जहाँ इस आत्मा नै अनन्त-अनन्त वार महादुख भावन करि वेदना समुद्रात ते क्षेत्र नहीं स्पशा सो सर्वदेश प्रदेशनि विर्षे वेदना भोगी है। सो पाप परिणति का फल जानना। इति वेदना समुद्रात । आगे कषाय समुद्घात का स्वरूप लिखिये है । तहां क्रोधादिक तोत्र कषाय के निमित्त पाय आत्मा के प्रदेश, मूल शरीर निकसैं तो एक प्रदेश, कोई के दीय प्रदेश, तीन प्रदेश आदि एक-एक प्रदेश बधत मूलशरीर तिगुणे निकसैं हैं। ऊँचे शरीर प्रमाण निकसैं सो घन रूप करिए तौ मल-शरीरतें नव गुणे होय सो इस कषाय समुद्घातवाले अशुभ तीन लेश्यावाले वनस्पतिमैं अनन्त हैं और वायु, तेज, अप, पृथ्वी-इन च्यारि स्थावरन में असंख्यात हैं। भावार्थ--इस लोक मात्र प्रदेशन में कोई एक प्रदेश नहीं रह्या जहाँ । अनेक बार कषाय समुद्घाततै क्षेत्र नहीं स्पर्शा । याने सर्वलोक प्रदेशन पै कषाय समुद्घात किए हैं। सो अशुभ फल का उदय जानना । इति कषाय समुद्घात । २। आगे मारणान्तिक समुदुधात का स्वरूप लिखिये है.---मारणान्तिक समुद्घातवाले जीव तीन अशुभ- . लेश्या सहित तिनका क्षेत्र सर्व लोक है। तहां जो जीव मरण के अन्तर्महर्त पहले अपने शरीरमैं तिष्ठता ही आत्मा प्रदेशन • बधायक अपने उपजने के स्थान क्षेत्र कू जाय स्पर्श पोछे माय मूल शरीर में समाहि पीछे
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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