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________________ भागे वचनिका लिखिर है। सो ऐसे स्तुति करि अरु प्रथम इस ग्रन्थमें प्रवेश करनहारे ज सुबुद्धि हैं। ते धर्मशास्त्रके वेता तिनको बतावै हैं। जो उत्तम तीन कुलमें उपजे धर्मात्मा मोक्षाभिलाषी होय सो रोसे || २ धर्म शास्त्रनि में प्रवेश करें हैं। तात इस ग्रन्धका टिण्यस सामान्य करि लिखिये है। सो उत्तम श्रावकनि | को परमव सुधारवे अर्थ धर्मशास्त्रनिका अभ्यास करना योग्य है। यह धर्मशास्त्र है सो याका सामान्य टिप्पणी कहिये है सो चित्तदेय सुनौ। आगे जो जो कथन इस ग्रन्थमें कहिये तिनको सूचनिका मात्र सामान्य टिप्पणी जो पीठिका सो लिखिये है। सो इस पोठिकाके जाने सब ग्रन्थका सुमिरण होय है। अर्थात् जिस अधिकारका चिंतन किये उस अधिकारके अर्थकी याद होय है तातें इस ग्रन्थके आदि कथनका टिप्पण लिखिये है ॥ सो प्रथम ही तो ग्रन्थकर्ता अपने इष्टदेवको मंगल. निमित नमस्कार करेगा । ७ । पीछे देवका कथन करते प्रश्नपाय सिद्धनिके सुखका कथन है 1२। आगे इस ग्रन्थके नामका कथन है । ३। तापीछे इस ग्रन्थमें ज्ञेयहेय उपादेयका स्वरूप है । ४ । पोई स्वज्ञेय परज्ञेयका वर्णन है । ५। बहुरि अवसर पाय पंच प्रकार परावर्तनका कथन है । ६ । ता आगे सम्यक्त्व होते मिध्यात्व छूटनेत, क्षयोपशमादि पंच लब्धिका स्वरूप है । ७ । बहुरि सम्यक दर्शनके दश भेदनिके स्वरूपका व्याख्यान हैं।८। पीछे सम्यक्त्वके पलीस दोषनिमें जातिमद आदि अष्टमद, अरु शंका आदि सम्यक्तवके आठ दोषनिका, अरु षट् अनायतन अरु तीन मूढ़ता इन पचीसनका स्वरूप है।६। आगे सम्यक्त्वके अष्ट गुणनिका व्याख्यान है । १०। सम्यक दृष्टी वीतराग कह्या ताप शिष्यके प्रश्न उत्तरका कथन है। । आगे शुभ अशुम श्रोतानिका कथन है । २२। आगे वक्ताके गुणोंका कथन है । ५३।। फिर प्रन्थकर्ता अपनी लघुता सहित ग्रन्थ करिकी अभिमानता छाडि ग्रन्थकर्ताकवली हैं, मैं नाहीं। १४। व्यवहारमात्र ग्रन्थ के अर्थ कवीश्वरों ने मिलाये हैं तिनमें बुद्धिको समानता करि कोई चूक होय, तो तिसको शुद्ध करिनेको विशेष ज्ञानीनत विनती करी तापै शिष्यके प्रश्न पाय उत्तर सहित कथन है । १५। ता ग्रन्थ करनेमें तरकी(तक करने वाले ) ने मान बताया, ऐसा प्रश्न होते अनेक युक्ति दृष्टान्त सहित, उत्तर कथन है।२६। पीछे ग्रन्थनिमें ग्रन्थकर्ता अपने नामका भोग धरें ताकी परिपाटी है । २७। पीछे भले बुरे पंडितनका तामैं धर्मार्थी अरु धर्मरहित तिनका दृष्टान्तपूर्वक तरकी ने कही ग्रन्धमैं कोई चूक होइगी तो दोष लागैगा ताके प्रश्न
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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