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________________ सोमहकारण धर्म । वे ग्रंथ अल्प गभर मा निमा मू: पारम जन हो । अजैन सबके पास तक पहुचाना चाहिये । अन्य सुन्दर मजबूत कागजोंपर बड़े टाईपमें छाकर सजिल्द, विद्वानों द्वारा संशोधित होकर प्रकाशित होना चाहिये । तोसरा आय-यह है कि यथा अवसोंपर समय समय बड़े बड़े सम्मेलन करके विद्वानोंके विद्वत्तापूर्ण धार्मिक, सामाजिक और नैतिक उन्नतिविधायक व्याख्यान कराना चाहिये । और ऐसे अवसरोंपर अन्यमती घिद्वानों द्वारा की हुई जैनधर्मपर शंकाओंका भी निराकरण करना चाहिये । चौथा उपाय-संघ निकालना, अर्थात् तीर्थादि पर्यटन के 'लिये बहुत जनसमुदाय सहित निकलना । संवमें संयमो व्रती विद्वान, पंडित, तथा उदारवृत्तिके धारी सच्चरित्र त्यागी पुरुषरह, इसलिये स्थान स्थानपर जहां जाना वहां उनके व्याख्यान कराना, ताकि उनकी विद्या और चारित्रका प्रभाव जनसाधारण पर पड़े। पांचवा उपाय-प्राचीन जैनमंदिरोंका जीर्णोद्धार कराकर अथवा यदि जिस स्थानमें जैनमंदिर न हो. और जिन दर्शना• मिलाषी जनों ( श्रावकों) की संख्या यथोचित हो, और वहांपर पुजन प्रक्षाल आदिका प्रबन्ध भो यथोचित चल सके, तो उस क्षेत्रको आवश्यकताके अनुसार जैन मंदिर बनवाकर उसको प्रतिष्ठा करवाना, और जिन भगवानके पञ्च कल्याणकोंका उत्सव कराकर सर्वोपरि जैनधर्मका प्रभाव फैलाना, पञ्चकल्या. णकका भाव अच्छी तरह सबको दिखाना, ताकि लोग यह समझ जाय, कि ऐसे तीर्थकर सहश महान् पुण्यात्मा कि जिनके गर्भंजन्मादिके समय देवोंने रत्न वर्षाये, अनेक उत्सव किये,
SR No.090455
Book TitleSolahkaran Dharma Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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