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________________ सोलहकारण धर्म । इस प्रकार श्रु तभक्ति या प्रवचन भक्ति नाम भावनाका स्वरूप कहा । जैसा कहा भी हैआगम चंद पुराण पदावत, साहित्य तर्क वितर्क पखाणे । काव्य कथा नव नाटक अंक सु. ज्योतिष वैद्यक शास्त्र प्रमाणे ऐसे बहुश्रुत साधु नम्जो , द्वादश अग सर्व पढ़ जाने। ज्ञान कहे नस पाय नमश्रत पार गये मन गर्वन आनं१२॥ इति बहू तभक्ति भावना। (१) आवश्यकापरिहाणि भावना। आवश्यकापरिहाणि- अर्थात् सामायिक, वंदन, स्तवन, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग इन छः नित्यावश्यक क्रियाओंमें हानि ( शिथिलता ) नहीं करना । आवश्यक अर्थात् नियत कृत्य । जरूरी काम ) को कहते हैं, उक्त छः कृत्य इसलिये आवश्यक नियत । हैं कि इनसे आत्माको शुद्धि होती हैं, कर्माश्रवके द्वार रागद्वेष कम होते हैं, सात्विकता प्राप्त होती है, पापोंसे भय होता है, पुण्यकी वृद्धि होती है, प्रमाद तथा विषयकषायोंके द्वारा लगे हुए दोषोंका निराकरण होता है । इत्यादि ऐसे अनेकों लाभ होते हैं। इसलिये इनको नित्य प्रति करना चाहिये । इनमें प्रथम ही सामायिक कहा है । सामायिकसे समता
SR No.090455
Book TitleSolahkaran Dharma Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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