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________________ सोमकारण धर्मं । ६२ 1 कभी नहीं । डॉक्टर, वैद्य, हकीम, जर्राह तथा दाई ( MMidwife or nurse ) आदिको तो सर्वथा ग्लानिरहित ही होना चाहिये, क्योंकि उनके पास तो सब जातिके ऊंच नोच और सब प्रकारके रोगो म आते है और उनका कर्तन की है कि वे सबको प्रेमसे भक्तिने, दयासे, सुललित शब्दोंसे सम्बोधन करते हुए उनकी चिकित्सा करें, सेवा करें न कि लोभवश निम्न कहायतको चरितार्थ करें- | वैद्यराज नमस्तुभ्यम्, यमराज सहोदरा | यमस्तु हरतु प्राणान् वेद्यं प्राणधनानि च ॥1 अर्थात् - हे वैद्यराज ! तुमको दूरसे हो नमस्कार है, ( हम तुम्हारी चिकित्सा नहीं कराना चाहते हैं ) क्योंकि तुम यमराज के भाई हो । नहीं, उससे भी अधिक हो, कारण यमराज तो केवल प्राणों का हरण करता है, परन्तु तुम ( लोभो य) प्राण और घन दोनोको हरण करते हो | यथार्थ में वैद्यविद्या केवल परोपकारार्थ ही है न कि धन इकट्ठा करनेके लिये है. जैसा कि प्रायः आजकल के अनेक वैद्य डॉक्टर कर रहे हैं । वैयावृत्य करना मनुष्य मात्रका कर्तव्य है, वैद्य पर हो यह निर्भर नहीं है । हां इतना अवश्य है कि वैद्य जनसाधाराणको अपेक्षा इस कार्यका चतुराई और विशेषता पूर्ण कर सकते हैं, परन्तु इसका यह आशय नहीं है कि और कोई बिलकुल कर हो नहीं सकता है। नहीं, प्रत्येक नरनारी अरनो शक्ति और बुद्धिके अनुसार अवश्य हो थोडो बहुत प्राणिसंघकी वैयावृत्य कर सकता है । ध्यान रहे कि वैयावृत्य अस्वस्थ रोगो प्राणियों को हो की
SR No.090455
Book TitleSolahkaran Dharma Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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