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॥ ॐ नः सिद्धयः॥ मालहकारण धमा
दर्शनविशुद्धिविनयसम्पमता शीलवतेवनतीचारोऽभीषणज्ञानोपयोगसम्बेगी शक्तितम्यागतपसी साधुसमाधियावृत्यकरणमहदाचार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्तिरावष्यकापरि - हाणिमार्गप्रभावनाप्रवचनवत्सलत्वमिनि तीर्थसत्यस्य ॥२४॥
( इति तत्वार्थसूत्र ० ६) __ अर्थ-दर्शनविशुद्धि, विनयसम्पन्नता, शीलवतेषु अनतिचार, अभीष्ण ज्ञानोपयोग, सम्वेग, शक्तितःत्याग, तप, साधुसमाधि, वैयावृत्यकरण, अहंदभक्ति, आचार्यभक्ति, उपाध्यायभक्ति, प्रवचन भक्ति, आवश्यकापरिहाणि, मार्गप्रभावना, प्रवचनवत्सलत्व ये सोलहकारण भावनायें हैं । इनको धारण करने तथा बार बार चितवन करनेसे सर्वोत्कृष्ट ऐसी तीर्थङ्कर प्रकृतिका आनव तथा बन्च होता है। ___ भावार्थ-आस्रव दो प्रकारका होता है-भावालय और द्रव्यानक । आत्माके चैतन्य गुणके रागद्वेष रूप विभाग परिणमनको भावास्तव कहते हैं । और उन आत्माके विभाव स्वभावका निमित्त पाकर जो पुद्गल वर्गणाएं कर्मरूपसे प्राण होती हैं उसे द्रव्यास्रव कहते हैं। सो मे दोनों आरव भी
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