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प्रस्तावना
तोर्थ प्रकृतिका बंध करनेवाले श्री सोलहकारण व्रतको १६ भावनाओं के विशद वर्णनको यह पुस्तक हमने वो संवत् २४०२
(मासे ३६ वर्ष पहले ) ओ प. दोपचंदजो परवार वर्णो नरसिंहर "निवासो के लिखवाकर " दिगम्बर जैन " की भेंट में प्रकट को थो, वह इतनो लोकप्रिय हुई कि उसको दूसरी आवृत्ति वोर संवत् -२४४२ में निकालना पड़ी थी। वह कुछ हो महिनोंमें खतम हो जानेसे वोर संवत् २४६९ में तिसरी आवृत्ति प्रकट को गई थो वह भो पुरी हो जाने से यह चोयो आवृत्ति वोर संवत २४७८ में प्रगट को थो, वह बोक जाने पर पांचवी आवृत्ति प्रगट की जाती है ।
इस पुस्तक में "सोलहकारण धर्म" के साथ सोलहकारण महिमा सवैया व व्रतकथा भो शामिल को गई हैं। अतः सोलह कारण व्रत करनेवालोंको व सोलहकारण धर्मका स्वरूप जाननेवालों को यह पुस्तक बहुत ही उपयोगी हो सकेगी।
हमारे भाई बहिन सोलहकारण व्रतके प्रोषधोपवास करते 'है उसके उपलक्ष में प्रभावनामें यह पुस्तक अवश्य बांटनी चाहिये । स्वाध्याय के लिये भी यह पुस्तक उपयोगो होगी, अतः सोलहकारण व्रतके दिनों में तो इसका पठनपाठन होना आवश्यक है । पर "सोलहकारण धर्म-दोपक" नामक चित्र भो बनाकर रख दिया है। जिसमें दोपक रखकर सोलह धर्मोके नाम बता दिये है ।
इस पुस्तक
आशा है इस पांचवी आवृत्तिका भो शोध हो प्रचार हो
जायगा |
सूरत, बीर संवत २५१३ शाख सुदी ३ आ. १.५६
निवेदक:---
'स्व. मूलचन्द किसनदास कापडिया, शैलेश डाह्याभाई कापडिया
ाशक
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