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________________ सोलहकारण धर्म | [ ११३ प्रजाके आश्रित है, इसलिये वह प्रजा पर नोतिपूर्णक शासन कर सकता है। उसका कर्तव्य है कि वह प्रजाको भलाईक लिये सतत प्रयत्न करे, उसकी यथासाध्य रक्षा व उन्नतिका उपाय करे, तभी वह राजा कहलाने के योग्य हो सकता है, और प्रजा भी उसकी आज्ञाकारिणी हो सकती है। राजा और प्रजाका संबंध पिता और पुत्रके समान होता है, इसलिये जब राजाकी ओरसे अन्याय व अत्याचार बढ़ जाते हैं, सब प्रजा अपना नया राजा चुन लिया करती है, और अत्याचारी अन्यायी राजाको राज्यच्युत करने देती है। मुख राजगृहीकी प्रजाने अन्यायी चिलांतक नामक राजाको निकाल कर श्रेणीको अपना राजा बनाया, और इस प्रकार श्रेणिक महाराज नीतिपूर्वक पुत्रवत् प्रजाका पालन करने लगे । पश्चात् इनका एक और व्याह राजा पेटककी कन्या चेलना कुमारीसे हुआ । चेलना रामी जैनधर्मानुयायी थी, और राजा श्रेणिक बौद्धमतानुयायी थे । इस प्रकार यह केरमेर ( केला और बेरी) का साथ बना था कि इनमें निरन्तर धार्मिक विवाद हुआ करता था। दोनों पक्षवाले अपने अपने पक्ष के मंडनार्थ प्रबल प्रबल युक्तियां दिया करते थे। परन्तु "सत्यमेव जयते सर्वदा" की उक्तिके अनुसार अन्तमें रानी बेलना ही की विजय हुई अर्थात् राजा श्रेणिकने हार मानकर जैनधर्म स्वीकार कर लिया और उसकी श्रद्धां जैनधर्म में अत्यत दृढ़ हो गई इतना ही नहीं किन्तु वह जैन धर्म देव या गुरुओंका परम भक्त बन गया और निरन्तर जैनधर्मकी उन्नति में सतत प्रयत्न करने लगा । C
SR No.090455
Book TitleSolahkaran Dharma Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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