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सप्तोपधान
उपधानसंबंधी विशेष ज्ञातव्य
(४) सामान्य पौषध के एकाशन में हराशाक, पक्के फल या उनका रस वर्जित है।
(५) उपधान करने वालों को चाहिये कि क्रिया करने के पूर्व सौ-सौ हाथ तक बसती शुद्ध करले, अर्थात् घूम कर देख लें कहीं का कोई अशुद्ध वस्तु तो नहीं पड़ी है, जैसे मानत्र या तिर्यचके शब था तो उनके शरीर का हाड़, रुधिर आदि आदि । तिर्यंच का शरीर था। उनका एक भी भाग ६० हाथ के भीतर अवश्य ही न रहना चाहिये और मनुष्य का १०० हाथ ।
(६) उपधान में तेल मईन व औषधोपचार भी त्याज्य है। प्रबल कारण उपस्थित हो जाने पर गुरु आज्ञा से ले सकते हैं। (७) चक्षुहीन को उपधान करने का निषेध नहीं है पर उसे एक सहायक की आवश्यकता रहती है।
(८) पौषध में कम्बल के काल समय आसन या कटासना मस्तक पर न रखना चाहिये। ओढ़ी हुई कम्बल का, दो घड़ी तक बैठने या ओढ़ने में भी उपयोग न करना चाहिये।
(९) समुदाय ने पडिलेहण कर काजा उद्धरा हो, उसके बाद अकेला पडिलेवण करे तो, उसेभी पूर्ववत् काजा-उद्धरना आवश्यक है। यदि वैसा न करे तो दिन कटता है।
(१०) जिस दिन उपधानमेंसे श्रावक या श्राविका निकलें, उस दिन बियासन और रात्रि पौषध करें। (११) चातुर्मासमें उपधान करने वाले पट्टोंका उपयोग कर सकते हैं।
(१२) छकीया के प्रथम दिन प्रबल कारण हो तो ही माला पहनाई जा सकती है। वैसा करना पड़े तो उस दिन पवेयणा करवा कर, वांचमा देकर, माला पहनाई जा सकेगी।
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